मैं और मेरे अह्सास
जुबान खामोश हैं पर कलम बोलती हैं l
हृदय में उठते लब्जों को खोलती हैं ll
दिल की बात सुनके दिल की कहतीं है l
वो सदाकत का साथ देकर डोलती हैं ll
उमड़ते भावों ओ उर्मि को किताबों में l
लिखने से पहले शब्दों को मोलती हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह