गमों का शहर ...............................
आँखों में आंसू और दिल में गम़ लिए हम फिर निकल चलें,
ऐ शहर गम़ देता है बहुत हम दूसरे गम़ की तलाश में निकल चलें,
रास्ते में जो मिला उसने अपने बसावट की जगह की खूब तारीफ की,
हम सुनते रहे खामोशी से ताकि उसे ऐ ना लगे की हमें उसकी कही बात पर यकीन हुआ नहीं ...........................
क्या सड़क क्या दरिया और क्या पहाड़ हमने सब कुछ पार कर लिया,
पर कहीं ना मिला वो शहर जिसका लोगों ने अपनी किताबों में ज़िक्र किया,
फिर लगा की कहीं अपने गम़ में डूब हम कहीं गलत तो नहीं आ गए,
ज़हन तो सोया रहा गहरी नींद में,
दिल ने कहा तुम जिस गम़ के शहर से चले थे वहीं पर लौट आएं .................................
ऊँचाईयाँ झांकते हुए बोली जो तेरे अंदर नहीं वो बाहर कैसे मिलेगा,
हर दफा आ कर बैठ जाता है मेरे पहलू में तुझे कौन सा तेरे सवालों का जवाब मिलेगा,
तेरी मायूसी का ईलाज आखिर हम कब तक करेंगे,
जा कर कह अपनी कहानी उस गम़ देने वाले से,
कब तक यूँ हम तेरी आँखों में नमी का समंदर देखेंगे ..........................................
स्वरचित
राशी शर्मा