दरारें .................................
दिखती तो है मगर अनदेखी की जाती है,
भरने की कोशिश में और गहरी हो जाती है,
तारीखों में भी इसकी छाप देखी जाती है,
मुद्दतों बाद भी ऐ वहीं की वहीं रह जाती है .......................................
दीवारों पर लीपा - पोती कर उसे सुंदर बनाया जाता है,
कभी फ्रेम तो कभी शो पीस से उसे ढ़का जाता है,
पीछा कर रही है वो हम सबका कुछ इस तरह,
तिनका - तिनका कर बना रही है अपनी जगह .......................................
दीवारो की तरह ही रिश्तों पर भी पुताई हो रही है,
पता है दरारें मौजूद है दरमियां फिर भी मिटाने की कोशिश हो रही है,
हंसता चेहरा ग़म तो छुपा सकता है मगर तल्खियां नहीं,
यकीन ना हो तो खुद की हथेलियों को देख लो,
जहां दरारनुमा लकीरों की कमी नहीं .......................................
स्वरचित
राशी शर्मा