बचपन की याद ✨
दिन वा दिन बदल रहे ,बचपन की याद को संजो रहा
समझ ना थी ,ना प्रेम था
बचपन की याद में , हास था परिहास था
वो क्षीण सी लड़ाई में ,मजा ही वो क्या था
मां बाप की डांट से, वो पैरो का कापना
यही तो भावना , नए सामानों को तलाशना , सवारना
तोड़ना
वो छोटी छोटी बातो को घुमा फिरा सजाना
झूठ भी, प्यार सा सूरत मासूम थी
दिन वा दिन बदल रहे
बचपन की याद को संजो रहा