कलम और कागज़ ..................................
चल आ कुछ ऐसे लिखें कि लोग दीवाने हो जाएं,
जिन लोगों को मुहब्बत थी कभी हमसे,
उन लोगों को हमसे इश्क हो जाएं,
पन्ना पलट - पलट कर खोजे वो हम में लिखे अक्षरों को,
और हम अपनी कहानी का अधूरापन उनके नक्ष पर छोड़ जाएं ..........................
लिखेगें आम सा कुछ पढ़ने वाले उसे अव्वल करेंगे,
अपने मुंह से वो जब हमारी बात किसी और से कहेंगे,
इंतज़ार करेगी दुनिया हमारी अगली कविता का,
कागज़ में बसी खूशबू और लफ्ज़ों में छुपे एहसासों का,
चल आ मेरे दोस्त आज फिर हम अपनी कहानी कहते है,
लोग करे वाह - वाह ऐसी कोई रचना करते है ....................................
कागज़ को जब कलम छुएगा तभी तो बात बनेगी,
दिल की बात लिखेगें तभी तो लोगों के दिलों तक पहुँचेगी,
अलमारी में रखें पन्नें अब पीले पड़ने लगे है,
सोच को जंग और कलम को नीब को हम खलने लगे है,
खिड़की से आती रोशनी पूछ रही है कि तू कब जागेगा,
कभी तो दें शब्दों को आवाज़ तू अपने जज़्बात तब तक छुपा पाएगा,
चल आ मेरे दोस्त इस दौर को अपना बनाते है,
लेखक को ज़रूरत है पढ़ने वालों की,
हम कदरदानों का जमघट लगाते है .....................................
स्वरचित
राशी शर्मा