कभी कोई अचानक ही, जीवन में चला आता है
आता है कुछ ऐसे कि, बस ख्यालों में छा जाता है
ख्यालों में छाकर वो, जीवन का अंग बन जाता है
अंग बनता है ऐसे, कि बिना उसके कुछ न भाता है।
कभी दिल का करार,तो कभी सुकून बन जाता है
बेकरारियों में अब तो, नाम ही आराम बन जाता है
बेसुरे से जीवन को, राग- रागनियों से भर जाता है
उसका एक ख्याल ही, काव्य- सरिता बन जाता है।
मन में उठते भावों को,स्वरबद्ध लय में पिरो जाता है
शांत हृदय रत्नाकर में,सागर मंथन सा करा जाता है
मंथन से निकले अमृत सम,प्रेम सुधा पान करा जाता है
वो अजनबी मुझको, मेरी ही अलग पहचान बता जाता है।
होकर अलग सा भी, मुझमें ऐसे शामिल हो जाता है
मेरे अस्तित्व का ही, एक जरुरी सा अंग बन जाता है
मैं हो जाती हूँ सिर्फ, उसकी ही और वो मेरा हो जाता है
जीवनसाथी सा संग चलता, सच्चा हमसाफर बन जाता है।।
-आशा झा Sakhi