तुम मुझे बुलाओ पुराने अवतारमे तो मै आऊ ,
वरना बस इसी दायरे मे ठहर कर रह जाऊ ।
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मुठ्ठी मे बांध ली है जैसे पुरानी शख्सियत,
बोल दे जो तु आजा़दी तो मै खोल पर आऊ ।
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नही लगता अच्छा कुछ युँ बदलके खुदको,
रोकलो इसे पहलेकी मै नई छवि घर कर आऊ।
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ख्वाहिश है या तो तुम पे पहलेसा कहर बनके ढा़उ,
या युँ हि खुल्ले आसमाँ सा खामोश शहर रह जाऊ।