'वीर की सहादत '
गम को सुनाऊँ, मैं तुम्हें गम को सुनाऊँ ,
याद में मेरे लाल की , मैं अस्क बहाऊँ ।
गम को सुनाऊँ.…............
पोंछने वाले की ,अब रूह न दिखती ,
रक्त के आँसू बने , इन्हें कैसे छुपाऊँ।
गम को सुनाऊँ.…............
वादे कि अहमियत ,तुझे नहीं लगती ,
राह में रोज मैं ,पलकों को बिछाऊँ।
गम को सुनाऊँ.…............
सोया है देर तक क्यों ,तिरंगे को ओढ़कर
उठता है कि नहीं मैं ,तुझे मार लगाऊँ।
गम को सुनाऊँ.…............
ये खून से सने कपड़े ,ये गहरे से घाव
कपड़ों को तेरे मैं , हृदय से लगाऊँ।
गम को सुनाऊँ.…............
सूखे है लब और सूखे है मेरे गाल ,
तू गया हि कहाँ जो तेरा शोक मनाऊँ।
गम को सुनाऊँ.…............
ले मैं खुश हो गई ,मातम को छोड़कर
तेरी सहादत में अब ,मैं गर्व मनाऊँ ।
गम को सुनाऊँ.…............
'उदय' के अल्फाज़ों में , माता का विशद दुःख ,
सहादत को मैं लाल की , दुनिया को सुनाऊँ ।
गम को सुनाऊँ.…............
याद में मेरे................
गम को सुनाऊँ.…............
- 'उदय '