मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ,
ये दरियाँ भी साथ है मेरे सफर में...

मैं दे रहा हूँ तुझे ख़ुद से इख़्तिलाफ़ का हक़,
मगर तेरी हाँ भी मिली थी सफर में...

इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का,
मगर तेरी भी जिद्द मैं मर जाऊ सफर मैं...

दाइम पड़ा हुआ तेरे दर पर हूँ मैं
जिंदगी ख़ाक हुयी पत्थर हुआ हूँ मैं सफर में...

अब तो मैं भी नहीं हूँ अपनी तरफ में
और उसका ज़माना हुआ है सफर में...

-jagrut Patel pij

Hindi Shayri by jagrut Patel pij : 111901897
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