ये अधूरे प्रेम-पत्र..
हैरत की बात है न
जब भी लिखना चाहा
आसमां ने
एक "प्रेम-पत्र"
धरा के लिए ,
कुछ लिख ही नही सका
बस, पिघल गया
"बारिश" बनकर ,
शायद इसीलिए
धरा भी लिखती रही
सभी असंम्प्रेषित खतों के जवाब
हरी चुनर पहनकर
चुपचाप ही !!
सुनों..
इसी "आपसी लिखावट" में
खोजते चले आ रहे हैं
हम-तुम
"अपना-अपना प्रेम"
सदियों से अब तक !!
यूं भी
कितना सुखद होता है न
कभी-कभी
"कुछ न लिख" पाना
"किसी" के लिए ,
और.. पढ़ा जाना
"उसके" द्वारा
सारा का सारा
वो अलिखा भी !!
तो हैं न कितने खूबसूरत
ये अधूरे प्रेम-पत्र
अपने संपूर्ण प्रेम के साथ !!
✍ - Namita Gupta