गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया
ज़ख्मों को जब भी रिसता हुआ पाया है
दोस्तों को खंजर चलाते हुए पाया है
गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया है
दर्द ए गम में जब भी आंसू बहाया है
फक़त माँ पा को साथ खड़े पाया है
जब भी जीने की ख्वाहिश में सर उठाया है
अपनों को ही खिलाफ ए मुक़ाबिल खड़ा पाया है
गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया है
ख़ुद की हाथों से जब भी ज़ख्मों को सीया है
हर बार जीने का एक नया मज़ा आया है
मुहब्बत की आस में जब भी सर उठाया है
मद ए मुक़ाबिल नफरतों की दीवार खड़ा पाया है
ख़ुद को जब भी समझाया है
दिल ए नादान को रोते बिलखते पाया है
दिन, महीने, साल गुजरते जा रहे हैं
लेकिन लोगों के दिलों में जस के तस
नफरतों की दीवार खड़े पाया है
गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया है
ईंट पत्थर की दीवारों को गिरता हुआ पाया है
लेकिन लोगों के दिलों में जस के तस
नफरतों की दीवार खड़े पाया है
मैंने जब भी खुद को गिरता हुआ देखा है
अपने अपनों को ही मुस्कुराता हुआ पाया है
गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया है
हालांकि, ऐसा नहीं है कि मैंने
किसी का दिल दुखाया नहीं है
जब भी माफ़ी के लिए हाथ जोड़ा है
अपनों को खंजर चलाते हुए पाया है
खूं ए जिगर को रिसता हुआ पाया है
गुजरे वक्त ने सिखाया है
कौन अपना है कौन पराया है
अज्ञात
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