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Abha Dave

Abha Dave

@daveabha6


गीता जयंती की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏💐💐

गीता
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गीता में छुपा हुआ है सब ज्ञान संसार का
खोल देती है अंतरपट आचार और विचार का
बचपन से बुढ़ापे तक की खूबसूरत साथी है ये
गूढ़ अर्थ छुपा हुआ है इसमें संसार के सार का ।


गीता का ज्ञान
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श्रीकृष्ण दे गए गीता का ज्ञान
नहीं है कोई भी उससे अनजान
गीता का सार सिखाता है जीना
पर सीख नही पाए, रहे अज्ञान ।

कलयुग में अब भी कई दुर्योधन हैं खड़े
अब कोई कृष्ण नही जो उससे आकर लड़े
समाज में फैल रही हैं कई विसंगतियां
पर सब अपने ही सुख-दुख में घिरे पड़े।

गीता की महिमा का मर्म जो समझे सभी आज
सफल हो जाए जीवन सभी का सफल हो काज
अनोखा गूढ़ रहस्य है इसमें सदियों से छुपा हुआ
समझ जो गये वही बजायें सुख का अनमोल साज ।

आभा दवे
मुंबई

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हाइकु-तुलसी विवाह
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1) देवउठनी
कार्तिक एकादशी
तुलसी हर्षी।

2) निद्रा से जागे
श्री भगवान विष्णु
नींद को त्यागे।

3)हरि के संग
ब्याही गई तुलसी
निखरा रंग ।

4)मंदिर द्वार
दीपक जल उठे
चढ़ाए हार ।

5)मंगल कार्य
देवउठनी पर
शुरू विवाह।

आभा दवे
मुंबई

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गुरुनानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏

गुरुनानक (जन्म 15 अप्रैल 1469
निधन 22 सितम्बर 1539)

रीतिकाल के कवि/संत गुरु नानक जी ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उनकी रचनाओं में ईश्वर को सर्वोपरि माना है और समाज को ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित किया गया है। गुरुनानक देव जी ने कई रचनाएं लिखी है । उनकी रचनाएँ 'गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहीत हैं, जिनमें 'जपु जी अधिक प्रसिध्द है। गुरु-भक्ति, नाम-स्मरण, एकेश्वरवाद, परमात्मा की व्यापकता तथा विश्व-प्रेम इनके प्रमुख धार्मिक सिध्दांत हैं । उनकी जयंती पर सादर नमन करते हुए प्रस्तुत है उनकी कुछ रचनाएं 🙏🙏

1)जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

2)सब कछु जीवितकौ ब्यौहार।
मातु-पिता, भाई-सुत बांधव, अरु पुनि गृहकी नारि॥
तनतें प्रान होत जब न्यारे, टेरत प्रेत पुकार।
आध घरी को नहिं राखै, घरतें देत निकार॥
मृग तृस्ना ज्यों जग रचना यह देखौ ह्रदै बिचार।
कह नानक, भजु रामनाम नित, जातें होत उधार॥

3)काहे रे बन खोजन जाई।
सरब निवासी सदा अलेपा, तोही संग समाई॥१॥

पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है, मुकर माहि जस छाई।
तैसे ही हरि बसै निरंतर, घट ही खोजौ भाई ॥२॥

बाहर भीतर एकै जानों, यह गुरु ग्यान बताई।
जन नानक बिन आपा चीन्हे, मिटै न भ्रमकी काई॥३॥

4)राम सुमिर, राम सुमिर / नानकदेव

राम सुमिर, राम सुमिर, एही तेरो काज है॥

मायाकौ संग त्याग, हरिजूकी सरन लाग।
जगत सुख मान मिथ्या, झूठौ सब साज है॥१॥

सुपने ज्यों धन पिछान, काहे पर करत मान।
बारूकी भीत तैसें, बसुधाकौ राज है॥२॥

नानक जन कहत बात, बिनसि जैहै तेरो गात।
छिन छिन करि गयौ काल्ह तैसे जात आज है॥३॥

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