विवेक पर्यावरण का तू जीवन में उतार ले
जल में कल की तस्वीर देखकर,
अपना आज और कल सँवारों।।
तपती धरती का आँचल देखकर,
कुछ तो हरकत अपनी सुधारो ।।
हाल ए वक्त को भी अनदेखा कर,
कल में अपने सुनसले सपने छोड़ो।।
सुखते हुए जल स्रोतों को देखकर,
मूर्ख निष्ठुर बने तुम क्या फिरते हो ?
जानते हुए भी अनजाने से क्यों रहते हो ,
अपने अविवेक से खुद ही क्यों मरते हो?
कर लो कुछ जतन अब भी ओ पगले!
बीत जाने पर समय पीट सर पछताओगे।।
पहल जीवन की आरम्भ खुद ही से कर लो,
अगली पीढ़ी का जीवन सुरक्षित कर लो ।।
अडौस-पडौस को अब अपने संग में लेकर,
अपने ही पर्यावरण का तछ संशोधन कर ले।।
अपने ही हाथों से अपना जीवन तू साध ले,
कल के सपनों की अपनी बगिया तू सँवार ले।।
विवेक पर्यावरण का तू जीवन में उतार कर ,
अपने संग अपनों का भी जीवन तू सँवार ले।।
सादर प्रस्तुति
डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा