कुछ लोग हमें अब भी अस्पर्श्य ही समझ रहे हैं ।

हमने कम यत्न नहीं किया ।

उनके इस व्यवहार के पीछे के रहस्य को समझने के लिए ।

इतिहास के कुछ पन्नों में लिखित सूचियों में ,

कई बार ,लगातार देखने और देखकर समझने

का करता रहा यत्न ।

शब्द कोष में इस शब्द की खोजता रहा परिभाषा और प्रयोग ।

परन्तु नहीं प्राप्त हुआ वह सुयोग ।

हाँ कल अनायास ही इस रहस्य से पर्दा उठ ही गया ।

और मैं पूरी तरह अपने अस्पर्श्य होने के रहस्य से

हो गया अवगत ।

अब मैंने सोच लिया है और कर रहा हूँ सीखने का यत्न भी ।

और साथ ही देखने का यत्न भी उन सबकी आँखों से ,

वही सबकुछ जो उनका सत्य है ।

और चुपचाप दफना रहा हूँ ।

अपने सत्य को ।

यह समझकर की भीड़ का सत्य ही स्पर्शय् और ग्रहणीय होता है ।

Hindi Poem by Arun Kumar Dwivedi : 111797013
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now