कुछ लोग हमें अब भी अस्पर्श्य ही समझ रहे हैं ।
हमने कम यत्न नहीं किया ।
उनके इस व्यवहार के पीछे के रहस्य को समझने के लिए ।
इतिहास के कुछ पन्नों में लिखित सूचियों में ,
कई बार ,लगातार देखने और देखकर समझने
का करता रहा यत्न ।
शब्द कोष में इस शब्द की खोजता रहा परिभाषा और प्रयोग ।
परन्तु नहीं प्राप्त हुआ वह सुयोग ।
हाँ कल अनायास ही इस रहस्य से पर्दा उठ ही गया ।
और मैं पूरी तरह अपने अस्पर्श्य होने के रहस्य से
हो गया अवगत ।
अब मैंने सोच लिया है और कर रहा हूँ सीखने का यत्न भी ।
और साथ ही देखने का यत्न भी उन सबकी आँखों से ,
वही सबकुछ जो उनका सत्य है ।
और चुपचाप दफना रहा हूँ ।
अपने सत्य को ।
यह समझकर की भीड़ का सत्य ही स्पर्शय् और ग्रहणीय होता है ।