मेरा मन
किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं करता!
कि तू भी इन मुक्त पक्षियों की तरह व्योम में विचरण करे,
देख लें नदियों का बहता हुआ कलकल पानी।
शिखरों पर पड़ी बर्फ की श्वेत चादरें,
आसमान को छूती पर्वतों की श्रृंखलांऐ।
ताज का चाँदनी रात में अद्भुत सौंदर्य,
क्यों नहीं करता?
करता है! मन मेरा भी करता है,
कि मैं भी देख लू पक्षियों का कलरव इस मुक्त आसमान में।
देख लू नदियों की शीतल श्वेत धाराओं का बहता जल,
देख लू पर्वतों पर बिछी बर्फ की श्वेत चाँदनी।
देख लू आसमान को टक्कर देती पर्वतों की चोटियाँ,
देख लू पूर्णिमा में ताज का निखरा निर्मल रूप।
पर क्यों किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं करता,
करता है, मन मेरा भी करता है।
देख लू इन्द्रधनुष के रगों को अपने जीवन में,
देख लू काली घटाओं में मदमस्त हुए मौरों का नर्तन।
देख लू भगिरथी तेरी गंगा का उद्गम स्थल,
और देख लू जा कर समर्पण उसका जलधाम में।
पर समेट लेती हूं ख्वाहिशें अपनी,
समेट लेती हूं अपने को अपनी ही दुनियाँ में।
कि मृगतृष्णा के पीछे कहाँ तक भागे मन,
पर क्यों ?
किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं?
करता है, मन मेरा भी करता है।