ये आँखे रोई -रोई -सी
सपनों के बिखरन से ।
आतुर थी जिनको छूने को ।
वह विखर गया ,वह विचर गया ।
शताब्दियों की प्रत्याशा
कुछ शुभ -सुन्दर होगा
संस्कृति समन्वित होगी
दृश्य देख दृग सिहर गया ,ठहर गया ।
मोह पाश परिभाषाओं का ।
हृदयों के अंतर का कारक ।
वेग नदी का नीरधि के
पद प्रक्षालन से घहर गया ,ठहर गया ।

Hindi Poem by Arun Kumar Dwivedi : 111778545
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