अब निभानी ही पडेगी दोस्ती जैसी भी हैं,
आप जैसे भी है नियत आपकी जैसी भी हैं,
खुल चुकीं है उसके घर की खिडकियां मेरे लिए,
रुख़ मेरी जानिब ही रहेगा बेरुखी जैसी भी हैं,
चोटियां छूं कर गुजरते हैं बरसते क्यूँ नहीं,
बादलों की एक सूरत आदमी जैसी भी हैं,
अजनबी शहरों में तुझको ढूंढते है जिस तरह,
एक गली हर शहर में तेरी गली जैसी भी हैं,
धुंधला धुंधला ही सही रास्ता दिखाई तो दिया,
आज का दिन है गनीमत रौशनी जैसी भी हैं,
झूलती है मेरे दिल में शाख उस पेड़ की,
वो तरो - ताजा है या सुखी हुईं जैसी भी हैं,
अब कहाँ ले जाये सांसों की सुलगती आग को,
जींदगी है जींदगी अच्छी बुरी जैसी भी हैं,
कोई मौसम हो मेरी खूशबू रहे उस फूल में,
दास्तान मेरी कही या अनकही जैसी भी हैं,
अब निभानी ही पडेगी दोस्ती जैसी भी हैं,
आप जैसे भी हो नियत आपकी जैसी भी हैं..।