यह उत्सव आजादी का बलिदानों का परिणाम
जिसके लिए फाँसी पर झूले वीरों का सम्मान
मुट्ठी भर आंग्ल भाषा भाषी लोगों ने आकर ।
दास बनाकर लूट रहे थे छद्मवेश सौदागर ।
जन्मदायिनी माता जबचीत्कार रही थी ।
निज स्वातंत्र्य हेतु सुतों को पुकार रही थी ।
माँ के कुछ वीर सपूतों ने अनुभूत किया था ।
अक्षुण्ण रखना है हम सबको माता का अभिमान
आजादी के दीवानों ने कभी नही यह सोचा होगा ।
आजादी के नाम पर हम सब से यह धोखा होगा ।
सत्ताओं का सौदा होगा राम और रहमान में ।
दीवारें खींची जाँएगी मानव और इंसान में ।
राष्ट्र वाद की परिभाषाएं परिवर्तित हो जाएँगी।
धर्माधारित राजनीति का ही होगा गुणगान।

Hindi Poem by Arun Kumar Dwivedi : 111741928
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