मुझे बाँधना चाहते हो ।
कैद करना चाहते हो ।
मेरी अल्हड़ता को ।
मेरा रूप मर्दन तुम्हें सुख देता ही क्यों है भला ।
मैं तो तुम्हें सुखी रखने के सारे जतन करती हूँ ।
तुम्हारे स्वेद बिन्दु को सुखाने के लिए प्रतिपल
रहती हूँ आतुर ।
तुम्हें प्यासा भी एक क्षण नहीं देख सकती ।
तुम्हारे पेट भरने का हर संभव प्रयत्न करती हूँ मैं ।
परन्तु अब तुम पहले से रहे नहीं ।
तुम बहुत बदल गये हो ।
तुम चाहते हो मैं तुम्हारा दासत्व स्वीकार कर लूँ ।
एक लोभी कामुक क्षणभंगुर सत्ता के अंतःपुर का कोई कोना पकड़ लूँ ।
यह संभव नहीं है ।
यह कदापि संभव नहीं है ।
मुझे विवश मत करो ।
तुम अपनी मर्यादा को समझो ।
मेरी मर्यादाहीनता ।
प्रलय का शंखनाद है ।

Hindi Poem by Arun Kumar Dwivedi : 111741528
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