तुम मुझे पहचानने की जिद छोड़ ही दो ।
तुमसे पहले भी कई कोशिशें मर चुकी हैं ।
तुम्हारे बाद भी कुछ मरेंगी ।
तुम्हारे चेहरे की रेखाएं बता रही हैं ।
कुछ उलझन है क्या ?
रात बहुत हो चुकी है अब सो भी जाओ ।
मत सोचो कल क्या होगा ।
हाँ कल तुम खिलती हुई कलियों ,नवोढ़ कोपलों को छूना ।
और फिर मुझे बताना उस अहसास को ।
दे सकोगे क्या उसे शब्द ।
आना और बैठना नदी के पास छूना बहते जल धार को ।
अनूभूत करना और फिर बताना मुझे ।
क्या बँधे बिना छिटक गयीं अनुभूतियाँ ।
क्या मिले शब्द ।
मैं फिर मिलूँगा ,
पूछूँगा नहीं कुछ भी ।
तुम बताना यदि बता सको ।

Hindi Poem by Arun Kumar Dwivedi : 111741525
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