Hindi Quote in Poem by Anita Bhardwaj

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हाथों की उंगलियां भी नहीं होती एक जैसी,
तो क्या हम उन्हें काट देते है,
जिस इंसान को ईश्वर ने नहीं बनाया दूसरों जैसा,
फिर क्यूं हम उन्हें अलग छांट देते हैं।
विकलांग कहा कभी, कभी दिव्यांग कह दिया,
समाज का अंग नहीं समझा कभी,
तो शब्द बदलने से होगा क्या?
तुम्हारी सहानुभूति नहीं,बस अपने हिस्से का संसार चाहिए,
मैं भी घूम सकूं,हंस सकूं,खेल सकूं,पढ़ सकूं,जी सकूं,
अपनी विशेष आवश्यकता के अनुरूप मिले मुझे भी संसाधन
बस इतना सा अधिकार चाहिए।
मुझे शब्दों से मत बहलाओ,
मुझे समाज का अंग समझकर प्यार चाहिए।
अनीता भारद्वाज

Hindi Poem by Anita Bhardwaj : 111619967
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