बेवफ़ा पर वक़्त जाया नही करते
इश्क़ रोज़ रोज़ जताया नही करते
तबीब हो हर शख्स ये जरूरी तो नही
जख़्म हर किसी को दिखाया नही करते
चंद लम्हों को रोशन करने की ख़ातिर
चिराग-ए-दिल शब भर जलाया नही करते
छोड़ जाएं शज़र को इक बार फिर तो
परिंदे भी लौट कर शाखों पर आया नही करते
मर जाने दो मर रहा है गर अरमानों की ख़ातिर
रोग-ए-इश्क़ से आशिकों को बचाया नही करते..!!