नारी आरती
जय नारी देवी मैया जय नारी देवी।
सद्गुण वैभव शालिनि तुम समाजसेवी।।
दो - दो परिवार का रखती मान।
फिर भी तेरा होता अपमान।।
पेट में ही दुनिया तुमको मारन चाहे।
जो जग में आओ सबके चेहरे मुरझाये।।
तुम पर सदा से रहते पहरे।
तुमको शिक्षित करने में सबको आते नखरे।।
दुष्ट सभी तुमको वस्तु भोग की माने।
न वंश चले बिन तेरे सब मूरख न ये जाने।।
ना ये नारी शक्ति को जाने।
देख तेरा अपमान बने सभी अनजाने।।
चहुँ ओर बजे तेरा डंका।
नारी के कारण ही भष्म हुई थी लंका।।
महिमा से तेरी है सब परिचित।
आरती तेरी गावें “अर्चित”।।
मेरी प्रभु से यही कामना।
हो दण्डित जो तेरी करे अवमानना।।
-Archit Pathak