मेरी और उसकी छत के बीच
बस मांझे भर की दूरी थी
कन्नी देने आना उसका
मेरा पतंग उड़ाना मजबूरी थी
पतंग तो एक बहाना था
खाली मुंडेर पर आने का
मेरे हाथों में उसकी चूड़ी थी
उसकी मेहंदी में नाम कोई अनजाना था
डूबती अपनी आंखों से उसने
अलविदा मुझ को बोला था
मैंने दांत से कन्नी काटी
बस हाथ में उसके डोरा था।
--अनुराग