Hindi Quote in Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़

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शुभ प्रभात शुक्रवार वैसे तो शुक्रवार का दिन सभी माताओं को समर्पित है जैसे मां दुर्गा मां लक्ष्मी मां सरस्वती और दुर्गा पौत्री मां संतोषी आज आपको मां संतोषी की कथा से अवगत कराया जा रहा है, ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ के द्वारा शुभ प्रभात, सुबह सुप्रभातम्
शुक्रवार
व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि़या के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक निकम्मा था। बुढि़या अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था। एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली। उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली। संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया|
इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे। घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे। एक दिन लकडि़यां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी। उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकडि़यां बेच दीं और सवा रूपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया। कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा
दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे। उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा। बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा|
वहां बहू रोज लकडि़यां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी। एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज तेरा पति लौटने वाला है। तू नदी किनारे थोड़ी लकडि़यां रख दे और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासूमां, लकडि़यां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो। बहू ने ऐसा ही किया। उसने नदी किनारे जो लकडि़यां रखीं, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला। घर पर
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ आप और हम और सभी भक्तों का बारंबार प्रणाम नमन नमस्कार है सभी माताओं को

Hindi Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ : 111547456
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