ऊँची लहरें कब डूबा सकी हैं हिम्मत की पतवार को
संकल्प पार ही कर लेते हैं विपदाओं के अम्बार को
बाधाओं और विघ्नों ने जब जब रोका है मानव पथ
मानव ने तब तब दिखलायी निज क्षमता संसार को
सुनती आयी है भारत भूमि नित वीरों की हुंकार को
अरिमर्दन करते अर्जुन के धनु की भीषण टंकार को
भीष्म, द्रोण और कर्ण के, देख चुकी पौरूष बल को
राम चन्द्र का रावण वध और श्री कृष्णा अवतार को
चाणक्य की बुद्धि देखी, देखा घनानंद की हार को
चन्द्रगुप्त का सिंहासन और उसकी जय जयकार को
विश्व विजेता के आगे सीना तान खड़े पोरस को भी
देखा गोरी के मस्तक पे, पृथ्वी के शब्दबेधी वार को
अकबर भी ना झुका सका, महाराणा की तलवार को
मुगलों ने भी मान लिया था, मराठी तीर कटार को
काँप उठी खिलजी की सेना, गोरा बादल के भय वश
सहना पड़ा एक पहर तक धड़ के तीक्ष्ण प्रहार को
अंग्रेजों की सत्ता के आगे रानी झांसी के प्रतिकार को
ब्रिटिश हुकुमत के कानों में मंगल की ललकार को
लाला,भगत आजाद, जवाहर और सुभाष से मतवाले
अर्द्ध नग्न फ़कीर गाँधी के, देखा है विराट आकार को
अभिनव सिंह "सौरभ"