आँखों के इस बरसात को
आंसू कह मत कर
इसकी तौहीन
ये अरमान हैं दिल के
हक़ीक़त मे तब्दील होने को
हर शाम अपने जोर पर होते हैं
और आखिर में
तोड़ देते हैं
दर्द की हर सीमा
लोगों के सोच का बांध
और उल्फाई हुई नदियों की भांति
डूबों देते हैं
सम्पूर्ण जीवन की विवशता
और बहा ले जाते अपने साथ
दुःख पीड़ा
और असहजता का एक अंश...।।
तृषा...