कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।
मन पटल की ' अंतरिम ' ,
तुम वेदनायें समझ पाओ।।
कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।
चांद मै देखूं जो नभ में ,
वो तुम्हें भी देखता,तुम भी निहारो
इस तरह ही पास आओ
जो हवाएं छूके तुमको है गुजरती,
उनको मेरा घर बताओ
कांत ! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।।
कभी भी उपहार की ना लालसा की
आपकी सेवा में अर्पण ज़िन्दगी की
आप ही सर्वस्व मेरे लौट आओ
कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।।
- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#अंतरिम