Hindi Quote in Poem by Saurabh Pant

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मौन पड़ी जो लाश थी,
नहीं बाकी जिसमें श्वास थी।
मन ही मन वो सोच रही थी,
नसीब को अपने कोस रही थी।
किया ऐसा क्या पाप था,
जो मिला ऐसा श्राप था।
जन्म लिया तो गरीबी में,
मौत मिली तो बदनसीबी में।
ना मिला किसी से सहारा था,
मैं,गरीब कितना बेसहारा था।
क्या यही मेरा कसूर था,
कि देश का अपने मजदूर था।
पूछी नहीं गरीब से कैफ़ियत,
दिखा दी मुझको मेरी हैसियत।
परदेसियों में ऐसी क्या बात थी,
वापस उनको ला रही सरकार थी।
मेरा भी तो परिवार था,
जो कर रहा इंतजार था।
किस काम का ये प्रशासन,
मिला गरीब को जब सदा शवासन।
एक सवाल वो पूछ रही थी,
शायद मिले शांति मन को सोच रही थी।
उठ रहा था मन में उसके अंतिम विचार,
अगर है मेरा कोई अधिकार,गरीब की मौत का कौन जिम्मेदार?
                                          ~सौरभ पंत

Hindi Poem by Saurabh Pant : 111432187
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