Hindi Quote in Poem by Saurabh Pant

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#एक मजदूर की गाथा
दिन-रात तेरा मैंने काम किया है,
तब जग ने तूझको नाम दिया है।
दिमाग भले ही तेरा था,
पर घिसता शरीर मेरा था।
तुझको दिया मैंने खुब कमा के,
आज ये आंखें तुझको तांके।
सोचा था तू बड़ी शख्सियत,
शर्म आ रही देख तेरी हैसियत।
मुसीबत में जहां होता तेरा सहारा,
ऐसे में तू कर रहा किनारा।
हमारे चलते तेरे ऐशो आराम,
उसके बदले तेरे ऐसे इनाम।
हमारे चलते तेरी खड़ी इमारत,
आज भगा रहा हमको फटाफट।
निकल पड़े हैं लेके झोला,
मैं मजदूर, जिसे समझती दूनिया भोला।
चलते-चलते जब लगी हरारत ,
रोड पे लेट मिटायी थकावट।
क्या तुझको तकलीफों का एहसास नहीं है,
भूखे पेट बच्चा मेरा सोता नहीं है।
आज बैठा हूँ जब रोड किनारे,
तब सोचा मैं था किसके सहारे।
किस्मत में थी मेरे मजदूरी,
बस यही थी मेरी मजबूरी।
माना तू है मेरा मालिक,
लेकिन याद रख हम सब का भी एक मालिक।
मेरा भी उसे दर्द दिखेगा,तब वो ऐसा खेल रचेगा।
न्याय प्रेमी है सबका मालिक, छपेगी तेरे कर्मों की कालिख।
                  'दिखावा करता जैसे तू भगवान्
                    कर्म है तेरे जैसे हैवान,बना फिरता तू अंजान'
हे इंसान!
              ~सौरभ पंत

Hindi Poem by Saurabh Pant : 111411557
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