हे इंसान!
माना रच दिये तूने कई कीर्तिमान,
थल में तेरा पहरा, जल में तेरे यान
यहां तक की पहुंच गया तू आसमान।
देख तू अपना बढता कद,पार कर गया अपनी हद।
अपनी मस्ती में होके मस्त,
कर दिया तूने पर्यावरण त्रस्त।
काटता चला जा रहा सारे जंगल,
कारण केवल सोचा अपना मंगल।
करा जानवरों को तूने बेघर,
फिर कहता क्यों फिरते दर दर।
देख बेसहारा तू डाले फंदा,
रखे डरा-धमका के दिखा के डंडा।
सिर चढ़ बोल रहा अभिमान,
सोचे खुद को सर्वशक्तिमान।
भूल गया तू तुझसे महान,
है इस जग का पालनहारा कहते जिसको सब 'भगवान्'।
चलता है जब उसका डंडा,
कैद कर देता बिना डाले फंदा।
नाम दिया जिसको तूने महामारी,
दिखा रहा वो तूझको तेरी लाचारी।
वक्त है संभल जा हे इंसान,
वरना ढूंढे ना मिलेगा नामोनिशान।
~सौरभ पंत
#किंमत