संस्कार - लघुकथा -
"रोहन यह क्या हो रहा है सुबह सुबह?"
"भगवान ने इतनी बड़ी बड़ी आँखें अपको किसलिये दी हैं।"
रोहन का ऐसा बेतुका उत्तर सुनकर मीना का दिमाग गर्म हो गया। उसने आव देखा न ताव देखा तड़ातड़ दो तीन तमाचे धर दिये रोहन के मुँह पर।सात साल का रोहन माँ से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं कर रहा था।वह फ़ट पड़ा और जोर जोर से दहाड़ मार कर रोने लगा। उसका बाप दौड़ा दौड़ा आया।
रोहन को गोद में उठाकर पूछा,"क्या हुआ?"
"माँ ने मारा।"
रोहन के पिता ने मीना को जलती निगाहों से घूरते हुए पूछा,"मीना,उसके दोनों गाल लाल हो रहे हैं।इतने छोटे बच्चे को ऐसे मारता है कोई?"
"मैं कोई नहीं हूँ, उसकी माँ हूँ। उसकी गलती को सुधारने का मेरा अधिकार है।"
"बच्चे को समझाकर भी सुधारा जा सकता है।"
"उसकी गलती मार खाने लायक ही थी।"
"ऐसा क्या किया था? मुझे भी तो पता चले।"
"पूछलो अपने लाड़ले से|"
दोनों पति पत्नी इसी बहस में उलझे थे कि रोहन बोल उठा,"माँ,कल दादी ने आपसे पूछा था कि मीना बहू क्या कर रही हो।तब आपने भी तो यही उत्तर दिया था कि भगवान ने ये बटन सी आँखें किसलिये दी हैं।"
मौलिक लघुकथा -