हास्य व्यंग्य कविता :- भ्रष्ट शिशु
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होली में जनमा, एक नेता का बेटा
मुसीबत बन गया, चैन से नहीं लेटा !
पैदा होते ही वह कमाल कर गया
उठा, बैठा और नेता जी की
कुर्सी पर चढ़ गया !
यह देखकर डॉक्टर घबरा गई
बोली - ये तो अजूबा है,
साईंस भी इसके सामने झूठा है ।
इसे पकड़ो और लिटाओ,
दुधमुंहा शिशु है, मॉं का दूध पिलाओ ।
दूध के नाम पर शिशु ने फुर्ती दिखाई
पास खड़ी नर्स की पकड़ी कलाई,
बोला - आज होली है, ये कब काम आएगी
काजू-बादाम की भंग अपने हाथों से पिलाएगी ।
नेता जी के
समझाने पर भी वह नहीं माना,
चींख-चींखकर अस्पताल सिर पर उठाया
और गाने लगा, शीला का गाना ।
उसके बचपने में शीला की जवानी छा गई,
मुन्नी बदनाम न हो इसलिए नर्स
भंग की रिश्वत लेकर आ गई ।
बेटे को भंग पीता देख
नेता जी घबरा गए,
बोले - तुम कौन हो और
क्यों कर रहे हो अत्याचार ?
शिशु बोला - तुम्हारी ही औलाद हूं
नाम है भ्रष्टाचार.... ।
@ राकेश सोहम्