"फिर समय बन मेरा गान ,गाने लगी "
दान हाथों में था मुझ अकेले के सब ,
थाल में सजके क्यूँ फिर तू आने लगी ???
सब समर्पण मेरे तुम पे वारे गये ,
जो कभी ना थे हम वो ही गाये गये...
गान तेरा मेरे निज की निजता बना,
आग से ना जले, जल जलाये गये...
श्वास की श्वास भी निकलेगी छूट के,
चुन विकल्पों की महिमा में जाने लगी।।
मध्य की बात का वह जो किस्सा बना, ,
गढ़ कहानी अलंकृत तुम्हारी हुई ..
कठघरे में दोबारा स्वयं हम खड़े ,
फैसला पक्ष से पक्ष का ना बना ...
लब कभी क्या कहीं बोलेंगे, तुम कहो??
बन के तुम ही विधा चहचहाने लगी।।