अल सुबह बस कुछ यूं गुस्ताखियां करने निकल पड़ता हूं। यूं तो रोज ही जीता हूं अपनी जिन्दगी बस कुछ पल तेरे मेरे यू जीने निकल पड़ता हूं। खामोश रहती है जुबां हर वक़्त,, इस सर्द मौसम में इसे शब्द देने निकल पड़ता हूं। अल सुबह बस कुछ यूं गुस्ताखियां करने निकल पड़ता हूं।।।
Nirãñtar