Hindi Quote in Poem by Kuber Mishra

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अहा कौन तुम स्वप्न सुन्दरी
चन्द्र कला में रमी हुयी
शान्त निशा की मधु उपवन सी
उज्वल घटिका थमी हुयी

छिटक चाँदनी पुष्प पल्लवित
शांत झील नीलांचल पट
शशि छाया उन्मुक्त वेदिका
स्वप्न लोक क्रीड़ांगन तट

तुम रचना की प्रथम पँक्ति सी
मचल उठी ज्यों कोकिल गान
उतर रही घूँघट पट खोले
खिली चाँदनी सी मुस्कान

कविता के आवारा शब्दों सी
इठलाती बल खाती
यूँ इतराती मन भरमाती
मदमाती सी लहराती

रतनारे चञ्चल नैनों का
जादू भरा तरल संघर्ष
संसय की धूमिल पगडंडी
या फिर सावन का स्पर्श

हो पेंचो खम से भरी हुई
बैरागी मन की सी कविता
या सावन के गलियारों सी
लहराती बलखाती सरिता

वर्षा मेह सदृश आच्छादित
श्यामल गहन सघन घन केश
सुर्ख कपोल उषा का आगम
देव कामिनी तन परिवेश

कुबेर मिश्रा

Hindi Poem by Kuber Mishra : 111228062
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