काव्योत्सव २
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।----
अधरों की मुस्कान है,
दिल के टुकड़े का नाम है,
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।
कभी नदी सी चंचल ,कभी सागर सी गहरी है ,
कभी मेरी बेटी,कभी मेरी माँ बन जाती है ,
कभी बच्चो सी ज़िद्दी ,कभी बड़ो सा डाटती है ,
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।
कभी नटखट सी शैतानिया है ,कभी गहरी बातें है उसमे,
कभी कितनी नासमझ ,कभी समझदार है ,
कभी छोटे से दर्द में चिल्लाती है, कभी बड़े घाव भी सह जाती है ,
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।
कभी मुझसे खाना खाती थी,अब मुझे खुद खिलाती है,
कभी मेरी गोद में सोती थी,अब मुझे सहलाकर सुलाती है ,
कभी मेरी छोटी गुड़िया थी,अब उसकी भी एक गुड़िया है ,
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।
अधरों की मुस्कान है,
दिल के टुकड़े का नाम है,
मेरी बेटी मेरा अभिमान है।
मेरी बेटी मेरे घर की शान है ।।