# Moral stories
गरीब का बेटा
रंजन एक होनहार बालक था । उसके पिता ठेला चला कर और माँ मिट्टी के बर्तन बना कर गृहस्थी चला रहे थे । रंजन शुरु से ही मन लगाकर पढ़ाई करता था । बारहवीं का परिक्षा परिणाम आया तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा । उसने पिच्यान्वे प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे । उसके मन में आगे पढ़ने और इंजीनियर बनने की इच्छा जागृत हो उठी । उसकी माँ ने सुना तो कहने लगी ," बेटा क्या हमेशा पढ़ाई की बात करता रहता है ,कभी अपने बाबा के काम में भी हाथ बँटाया कर । हम कब तक जी तोड़ मेहनत करके घर का और तेरी पढ़ाई का खर्च उठाते रहेंगे ? "
खुशी में माँ की बात अनसुनी करके वह कहने लगा ," बाबा मुझे आगे इन्जीनियरिंग के फार्म भरने हैं । पैसों की जरूरत है । "पिता ने पैसों का इन्तजाम ना कर पाने की वज़ह से कहा ,"बेटा यह पढ़ाई का शौक कहाँ से पाल लिया तूने ? तुझे देने को मेरे पास फीस वगैरह के लिये इतने पैसे नहीं हैं । तेरी एक छोटी बहन भी है । परिवार का पेट पालूँ या तुझे पढ़ाऊँ ? काश तू किसी अमीर बाप का बेटा होता !"
रंजन हताश नहीं हुआ । कहने लगा ," बाबा आप तो बस हाँ कर दो, खाली समय में मैं ट्युशन पढ़ाकर अपनी फीस भर लूँगा । पर पढूँगा जरूर । अब रुकूँगा नहीं ।"
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’ जहाँ चाह वहाँ राह’ को सार्थक करती लघुकथा ।