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#moral stories बाबूजी का श्राद्ध श्राद्ध पक्ष में बाबूजी का ग्यारस का श्राद्ध निकालना था । दो दिन पहिले ही पंडित जी को न्योता दे दिया था । उस दिन सुबह जब याद दिलाने के लिये उन्हे फोन किया तो, वे कहने लगे,” मुझे तो बिल्कुल समय नहीं है , दूसरी जगह से भी न्योता है,पहिले वहाँ जाऊँगा । आपके यहाँ तो शाम को ही आ पाऊँगा " । क्या करते आजकल पंडित मिलते कहाँ हैं सो मानना पड़ा । थोड़ी देर में उन्ही का फोन आया बोले," खाने का इन्तजाम टेबिल-कुर्सी पर कीजियेगा और दक्षिणा में कम से कम सौ रुपये के साथ पाँच वस्त्र भी मंगवा लीजियेगा । " हम सभी का सिर चकरा गया । सभी सोच में पड़ गये कि क्या करें ? श्राद्ध का खाना तो हम सुबह ही खिलाना चाहते थे । माँ का कहना था ," जब तक श्राद्ध निकाल कर पंडित जी को भोजन ना करा दें घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता है ,ऐसी परम्परा है "। थोड़ी देर में देखा कि घर के द्वार पर एक दीन-हीन बूढ़ा आदमी निढ़ाल अवस्था में बैठा था और कह रहा था-"मैं बहुत भूखा हूँ--,कई दिनों से ठीक से खाना भी नसीब नहीं हुआ ,कुछ खाने को देदो ।" उस पर बड़ी दया आ गयी । उसे घर के अहाते में बैठा कर आग्रह पूर्वक खाना खिलाया । वह भरपेट खाना खाकर और पानी पीकर ,ढ़ेर सारी आशीष देता हुआ चला गया । उस दिन लगा आज बाबूजी का श्राद्ध ठीक से सम्पन्न हुआ । -------------------
# Moral stories गरीब का बेटा रंजन एक होनहार बालक था । उसके पिता ठेला चला कर और माँ मिट्टी के बर्तन बना कर गृहस्थी चला रहे थे । रंजन शुरु से ही मन लगाकर पढ़ाई करता था । बारहवीं का परिक्षा परिणाम आया तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा । उसने पिच्यान्वे प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे । उसके मन में आगे पढ़ने और इंजीनियर बनने की इच्छा जागृत हो उठी । उसकी माँ ने सुना तो कहने लगी ," बेटा क्या हमेशा पढ़ाई की बात करता रहता है ,कभी अपने बाबा के काम में भी हाथ बँटाया कर । हम कब तक जी तोड़ मेहनत करके घर का और तेरी पढ़ाई का खर्च उठाते रहेंगे ? " खुशी में माँ की बात अनसुनी करके वह कहने लगा ," बाबा मुझे आगे इन्जीनियरिंग के फार्म भरने हैं । पैसों की जरूरत है । "पिता ने पैसों का इन्तजाम ना कर पाने की वज़ह से कहा ,"बेटा यह पढ़ाई का शौक कहाँ से पाल लिया तूने ? तुझे देने को मेरे पास फीस वगैरह के लिये इतने पैसे नहीं हैं । तेरी एक छोटी बहन भी है । परिवार का पेट पालूँ या तुझे पढ़ाऊँ ? काश तू किसी अमीर बाप का बेटा होता !" रंजन हताश नहीं हुआ । कहने लगा ," बाबा आप तो बस हाँ कर दो, खाली समय में मैं ट्युशन पढ़ाकर अपनी फीस भर लूँगा । पर पढूँगा जरूर । अब रुकूँगा नहीं ।" ------------- ’ जहाँ चाह वहाँ राह’ को सार्थक करती लघुकथा ।
# Moral Stories जिम्मेदारी का अहसास शीतल ने भीड़ भरे बाजार में गाड़ी खड़ी की तो एक नौ-दस वर्ष का साँवला सा लड़का,मैले कपड़े पहने हुए, कार साफ़ करने लगा ।उसने मना किया तो कहने लगा ,"मेम साब मैं गाड़ी साफ़ कर दूँगा । कुछ भी दे देना ।" " नहीं ! हटो रहने दो । " " करवालो मेमसाब । कल से कुछ नहीं खाया है । " शीतल ने अनसुना करते हुए कहा ,"तुम अभी बच्चे हो पढ़ने के लिये स्कूल क्यों नहीं जाते ?" उसने कहा ,"हमारे पास स्कूल के लिये पैसे नही हैं ।" उसने कहा, झूठ बोलते हो,तुम पढ़ना ही नहीं चाहते । चलो मेरे साथ अभी सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाती हूँ । लड़का गिड़गिड़ाने लगा । "नहीं मेम साब ! मेरे पेट पर लात मत मारो । स्कूल जाउँगा तो मेरी बूढ़ी दादी और बीमार दादा को रोटी कौन खिलायेगा ? माँ बाप पहले ही एक दुर्घटना में मर चुके हैं । हम भूखे मर जायेंगे । " सुनकर शीतल का मन द्रवित हो उठा , उसने निश्चय किया कि इस बच्चे के लिये कुछ करना चाहिए । सबसे पहले उसे समझा कर सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाया जिससे वह शिक्षित हो सके । उसके बाद उसे एक दुकान पर काम दिलवा दिया | सुबह का स्कूल था, दोपहर में बारह बजे वहाँ से दुकान पर काम पर जाने लगा ,उससे उनकी रोटी का जुगाड़़ होने लगा । पढ़ लिखकर जब वह शीतल के सामने खड़ा हुआ तो उसने असीम आत्मिक शान्ति का अनुभव किया ।
#kavyotsava मुहब्बत की बात रात चाँद ने की फिर चाँदनी से आँखों में नेह भर कर मुहब्बत की बात । सूरज ने भी की प्रात: बेला में भोर किरण से उष्माते मन की बात । सौम्य पर्वत ने की चंचल हवाओं से गम्भीर हो अपने मन प्रणय की बात । नीले सागर ने की गौर वर्ण नदिया से मिल कर फिर ना बिछुड़ने की बात । कोई कुछ ना बोला प्रेम अव्यक्त ही रहा प्रकृति ने दोहराई शाश्वत प्रेम की बात । मुखर हो उठे मूक प्रेम निमन्त्रण छा गई हरितिमा फैली प्यार की बात ।
#kavyotsav मिलन हो रहा है निर्वचन धरती विस्मित हो देखती रही ना जाने कितने कैक्टस उग आये उसके कंधों पर जिनके बोझ तले वह धँसने लगी, अचानक ऐसी आँधी चली दिग्भ्रमित हो वसुधा भटकने लगी समझ ना पाई किसका हाथ थामें असमंजस सा छाने लगा तभी नील गगन ने आ धरती को पुकारा थामने को हाथ और सिर टिकाने को कंधा मिला उस पहली छुअन से प्यार का अहसास हुआ विश्वास जाग उठा शर्म से धरती लाल हो गई-- वह सिमटने लगी देखो वहाँ दूर... ऐसा लगता है जैसे धरती और गगन का मिलन हो रहा है । मिलन हो रहा है निर्वचन धरती विस्मित हो देखती रही ना जाने कितने कैक्टस उग आये उसके कंधों पर जिनके बोझ तले वह धँसने लगी, अचानक ऐसी आँधी चली दिग्भ्रमित हो वसुधा भटकने लगी समझ ना पाई किसका हाथ थामें असमंजस सा छाने लगा तभी नील गगन ने आ धरती को पुकारा थामने को हाथ और सिर टिकाने को कंधा मिला उस पहली छुअन से प्यार का अहसास हुआ
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