Hindi Quote in Shayri by Anwar Suhail

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तुम जिन्हें आज कह रहे हो
आस्तीन के सांप
मैं इन्हें तब से जानता हूँ
जब ये आस्तीनों में चुपचाप थे पलते
और मैं हैरान होता था कि तुम
येन-केन-प्रकारेण इनका
करते थे वंदन-अभिनन्दन

तब से अब तक गंगाजी में
बहुत सा पानी बह चुका दोस्त
तुमने बहुत देर कर दी असलियत बताने में
ये तब भी मलाई चाटते थे और अब भी

मुझे मालूम है की तुम जानते थे
कि ये आस्तीन बदलने में माहिर हैं
और जिन आस्तीनों में पलते हैं
उन्हें कभी नहीं डसते, विषधर हैं फिर भी

मैंने तब भी तुम्हें किया था आगाह
जब आस्तीनों से निकलकर ये विषधर
सत्ता या सेठाश्रयी प्रतिष्ठान के मंचों पर
भव्य-दिव्य बने चमका करते थे
जिनकी अनुशंषाओं से जाने कितने संपोलों ने
पा लिए पद-प्रतिष्ठा और अलंकरण

देखो तो, आस्तीनों से बेदखल होकर अब
ये संपोले कैसे बिलबिला रहे हैं
और हमें अचानक प्रतिरोध का पाठ
चाह रहे पढ़ाना, कि इनकी खुल चुकी है पोल
और होशियार रहो किहमनें
सीख ली है प्रतिकार की भाषा......

Hindi Shayri by Anwar Suhail : 111086128
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