Quotes by चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी in Bitesapp read free

चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

@rk1996tgmailcom9244


नन्ही छोटी मुट्ठी
मुट्ठी में कुछ तो बंद थे
बंद थे कुछ छोटे– छोटे दाने
बंद मुट्ठी पर ताले
सरक रहे है पीछे
फिर भी गिर गए थे कुछ नीचे
डरे हुए जज्बात लिए
ठंडे– ठंडे हाथ लिए
दबे पांव वो चुपके
धीरे – धीरे घिसक रहे वो छुपके
लेकिन लगता है चोरी पकड़ी गई
नज़रे मम्मी पर जब जा अटके
घूर रही थी आंखों में डांट लिए
लंबी सी छड़ी वो हाथ लिए
खींच रही थी कान
बिलकुल भी नही तू सुनता मेरी
बोली तू हो गया शैतान

✍️ रिंकी उर्फ़ चंद्र विद्या
#चोरीपकड़ीगई #बालकविता

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सौ सवाल करे
बार–बार कहे ।
मैं हार गई
वो मुझे हार गए।
क्या मैं चीज़ भली थी?
भरी सभा पड़ी थी ।
मर्यादा गई ,संस्कार गए,
बची कूची थी जो मनुष्यता
लगता वो भी हार गए।
आंखों में अश्रु भरे थे,
मन में फिर भी एक आस जगी ,
मस्तक पर दया की भीख पड़ी थी ,
क्या मैं लाशों के बीच खड़ी थी।

वो मुख पर एक हास्य लिए
आंखों में वो विलास लिए ,
केशो से मुझको खीच रहे थे।
सब शीश झुकाए हर तरफ खड़े थे ,
मैं चीख रही थी ,सब देख रहे थे।

न किसी में दया की भीख बची थी ,
माता की न कोई सिख बची थी।

मैं टूट गई ,कोशिश मेरी छूट गईं थी
मैं निस्तब्ध खड़ी थी
करुणा दया सब हार गई
मनुष्यता भी शर्मशार हुई
भरी सभा मुझे निर्वस्त्र किया
आत्मा पर कैसा अस्त्र दिया
राजपाठ भी लगता सारा ढह गया
और न समाज में लाज बची थी

जंघा टूटी , सांसे टूटी ,
टूट गए वह शीश सभी ।
देख रहे थे जो , नीच मुझे कभी ।
खींच रहे थे जो केश मेरे
उन्ही के रक्तो से मैंने केशो को धोया था
जो बोल ना सकी वो समाज गया
जो छुए थे वो मैले हाथ गए ।
देख रहे थे भरी सभा खड़े
देखो कैसे राख भए

युद्ध हुआ महायुद्ध हुआ
प्रलय हा हा कार मचा
त्राहि –त्राहि चहु दिशा
निर्लज्ज पतित को वह
एक सीख सिखाने आए थे
वो द्वापर युग था ।
मुझे कृष्ण बचाने आए थे।

✍️ रिंकी उर्फ़ चंद्रविद्या

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मैं की भावना से मुक्त मैं नारी ।
बचपन में पैंट–शर्ट की शौकीन भारी।

शौकीन इसलिए कि
पापा समझे मुझे बेटा ,मैं बेटी नहीं
मैं लड़को– सी रहती
लडको–सी कहती

मैं खुद के लड़की होने के अस्तित्व को नकारती गई
सोची मैं जीत गई, मगर मैं हारती गई

शरीर तो वही
सब कहते मैं बेटा नहीं

मैं रोती और कहती मैं बेटा नही तो बेटी ही सही
लेकिन तुम्हारे नज़र में यह फर्क भला क्यों ?

लड़को की गंदी नजर
उनके इधर उधर छूने का असर

मैने लड़का होना त्याग दिया
अस्तित्व लड़की का ही पूरा अपना लिया

लेकिन आदत कैसे बदलती
अब लडकियो की तरह मैं नहीं सजती

परंतु मुझे मेरे होने पर गर्व है ।
मैं भावुक हूं ,मैं ममता से ओत प्रोत हूं
अब शान से कहती हूं हां मैं औरत हूं।

#Women

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As time passes,
it tells the stories of you and your life.
When you came to
someone else's house as a wife.
You became a daughter-in-law
and then a mother.
Your evey time for me
You evey time available
Then no one was more important
than me in your life.
When did your sacrifices,
And your time,
all your happiness stop being yours
and become mine?
We were four
but we could not give you happiness.
I get peace shadow in your brest
You yourself did not sleep night
after night to give us rest.
You were one and all our happiness became yours.
Mom you feeling ,your touch
How such a pure.
I slept peacefully ,
without knowing how you are.
As I grew up
I thought maybe you forgot me
Maybe you don't love me
Now I feel
You never went away from us,
we had go to far

#mother 's day

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#MothersDay
मेरी आंखे नहीं खुलती ।
जब तक तुम्हारी गालियां.....
मेरे कानों तक न आए।
मेरी तो हर सुबह ऐसी ही होती हैं
तुम्हारी डांट और सुबह की चाय ।
मेरे हर कामों में ..…
तुम कमियां निकालती हो...।
नहीं देखती जगह अब भी ,
आता है गुस्सा...
तो डांटने लग जाती हो
सच बताऊं तो बुरा लगता है मुझे
कि मां अब हम बड़े हुए
लेकिन तुम्हारे लिए , हम कब बड़े हुए
मां.. वो तुम्ही हो
जो मेरी थाली में , एक रोटी ज्यादा डालती हो
मेरी जरूरतों का ख्याल , मुझसे ज्यादा है तुम्हे
जो सोती नहीं आंखे रात भर वो तुम्हारी है
रात में हट जाए चादर मेरे ऊपर से
ठंड में वो तुम्ही हो मां
जो मेरे ऊपर डालती हो।
✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

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तपाक से रोटी चकले पर बेली
और सटाक से तवे पर
बेलन पर बैठ गई उसकी हथेली
बेलन– चकले की सहेली
थोड़े सने आटे हाथो में
थोड़े अनमने ढंग से लगे
उसके कुछ बालों में
बन रहे है हाथों में कुछ गोल गोल से
एक बराबर बनाए गये
जैसे तोल मोल के
फिर बेलन –हाथो का कमाल
घूम रहा चकले पर जैसे कोई थाल।
गर्म– गर्म ,नरम –नरम से ....
तवे पर सिकती
तेरी हाथो की रोटी चूल्हे से निकली

✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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come come come, come to me.
hold my hand
and go to free
when you afraid, when you sad.
come sit down
think about your dare.
close your eyes , feel sunrise,
think all types of flower here
air is everywhere
you are not alone,
no here anyone non

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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झूठे नकाब और नकाबो के पीछे चेहरा भी झूठा।
छुप जाते है इरादे , असली मकसद और हदे ।
मुस्कुराते चेहरों के पीछे का छल ,
बैठे–बैठे कर जाते सारे प्रपंच,
हाथ मिलाते और कहते
साथ है हम ।
लोहे का सच लोहे को नहीं पसंद
चढ़ा लिए जाते खुद पर सोने का रंग
मुझे अफ़सोस है
यहां लोगो को असली चेहरा खुद का पसंद नहीं आता,
इंसानी फितरत चढ़ा लिया है जाता मुखौटा।

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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इधर –उधर ताकती नजरे
पड़ोसियों के झांकती है घरे
कुछ ताकती है कांखियो से
कुछ रहती है दीवारों से कान चिपकाएं
कौन आया ? कौन गया ?
रहता है ध्यान
गिनती है चप्पले ।
फिर होती है खुसुर –फुसुर ,
बढ़ती है बात ।
फिर औरतों की बैठके, औरतों के साथ।
जमता है जमावड़ा ।
कोई बैठे ,
कोई सुनता है खड़ा
कुछ छूटा ,कुछ पकड़ा,
कुछ रहती नज़रे अड़ा
फिर घंटो होती है चुगलियां
और चलती है,हर घर की कहानियां।

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

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