"मिट्टी"
आ गया लौटमलोट होकर, मुझे और दूसरा कोई काम नहीं है भला क्या?
बस दिनभर तुम्हारे ही काम करती रहूं, कितनी बार समझाया है पर चिकने घड़े पर कोई असर नहीं होता !
जब देखो मिट्टी में नहाकर आ जाता है !
मेरे गाँव में हर माँ की यही रामकथा रहती थी मेरे बचपने में !
उस समय शहर का डामर रोड़ मेरे गाँव तक नहीं पहुँचा था ! खेलने के लिए चारो तरफ मिट्टी के बड़े-बड़े खुले मैदान हुआ करते थे !
सब बच्चे अपने-अपने मिटटी के घर बनाते, दादी-नानी पुराने कपड़ो को फाड़कर गुड्डा-गुड्डी बना देती थी जिसे मेरे गाँव की बोली में ढिंगला-ढिंगली कहकर बुलाया जाता ! उन बिना दीवारों और खुली छत वाले मिट्टी के घरों में उन गुड्डे-गुड्डो की शादीयाँ भी होती थी !
कुछ लड़के-लड़कियां उन गुड्डे-गुड्डो के माता-पिता और रिश्तेदारों का किरदार निभाते थे !
गांव के सारे बच्चे मिलकर खेलते रहते मिट्टी में, गीली काली चिकनी मिट्टी की बसें और कारे भी बनाते थे हम लोग, कुछ बच्चे तो खुले डाले वाले ट्रक भी बनाते और ख़ूब मिट्टी भर भर ढोते भी !
घर पर पड़ी पुरानी ईंटे भी हमारी मोटर गाड़ियां हुआ करती, सुखी मिट्टी पर ख़ूब दौड़ती हमारी ये मोटर-गाड़ियां और एक खास बात ये होती की सबकी मोटर की अपनी अलग सड़क होती !
स्कूल से आने के बाद ये हमारा रोज का काम था !
हम खेलते तो थे मिट्टी से किन्तु हमारी धुलाई हमेशा डंडे से ही होती थी !
आला चौहान