एक हवा थी मोहपाश जाल था
अजीब सा ये साल था
न मुस्कुराहट न आँसूआें का खयाल था
इच्छाओं का अजब सा मकड़जाल था
एक न पूछा गया सवाल था?
किस छूटे लमहे का मलाल था
न गाजे न बारीश न मेलों में गाना
न सावन न झूले न ही कोइ अफसाना
बाढ़ थी क्या ? शायद
पर सूखा का तो जंजाल था
न ही कोई मौसकी
न ताल था
हर आदमी बेहाल था
अजीब सा ये साल था
कुछ धराशायी हुये कुछ कहीं फिर से संभले
कुछ नें शरम ओढ़ी कुछ बेहया वही बाते वही लहजा पुराना हाल था
सियासत का भी बवाल था
किसको किसका खयाल था
अजीब सा ये साल था
हम थोड़े कवि हुये वो कविता
इसीलिये मेरे आसपास की हवा का रंग लाल था
बस यही थोड़ी सी सोखी थी थोड़ा सा गीलापन
ये सब किसका ? कमाल था
सब अजीब
अजीब सा ये साल था