Hindi Quote in Story by Anju Kharbanda

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गरम परांठे- अंजू खरबंदा

नौकरी के सिलसिले में कभी एक शहर कभी दूसरे । कभी ढंग का खाना मिलता कभी नहीं भी मिलता । आज सुबह सुबह सामने टेबल पर पङे टोस्ट और कॉफी को देखते देखते अचानक मां याद आ गयी ।

"अरे जल्दी आ जा ! आज तेरी पसंद के प्याज़ के परांठे बनाये है साथ में तेरी मनपसंद मलाई वाली दही और सफेद मक्खन भी है ।" मां ने रसोई से आवाज़ दी ।

"अभी बिजी हूँ मां । लैपटॉप लेकर कहाँ आऊंगा रसोई में! आप यहीं मेरे कमरे में ही दे जाओ ।"

"अच्छा चल ठीक है ।" कहकर मां गरमागरम परांठा लेकर मेरे कमरे में झट हाज़िर हो जाती ।

"रख दो मां, अभी खा लेता हूँ ।" लैपटॉप में नजरें गङाए मैंने कहा ।

"बेटा.... गरम गरम परांठे का स्वाद ही अलग होता है । तू पहले खा ले, फिर काम करते रहना ।" मां ने लाङ से मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा ।
"हां मां ! ठीक है !"

मां फिर रसोई में चली जाती ।
अगला परांठा लेकर मेरे कमरे में दुबारा आईं तो पहला परांठा ही जस का तस रखा था ।

"तूने खाया नहीं अभी तक ! " न नाराजगी न रोष, बस प्रेम से भरा उलाहना ।

"खाता हूँ मां, बस दो मिनट और! आप दूसरा भी रख दो । मेरी बस और नही लूँगा ।"

माँ जाते जाते प्लेट वापिस ले कर जाने लगी ।
"मां! क्या हुआ!"
"तू काम कर ले । तेरे लिए साथ साथ गरमागरम बना दूँगी । ठंडे परांठे खाने में क्या स्वाद भला !"

"और ये !"
"ये मैं खा लूँगी ।"
"ठंडे !!!!"
"मुझे आदत है.... मेरी माँ नही थी तो ... ठंडा खाना खाने की आदत पङ गई ।"
"पर मां.... !"
"मै बङा तरसती थी गरम परांठे खाने को । तेरी तो मां है ना तुझे गरम परांठे बनाकर खिलाने के लिए ।"

Hindi Story by Anju Kharbanda : 111058271
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