मैंने प्यार का समुद्र तो नहीं देखा
धारायें देखी हैं
बहती हुई, पहाड़ियों से गुजरती, धरती को सींचतीं,
उम्र में समाती हुयीं।
मैंने प्यार का आकाश तो नहीं देखा,
टिमटिमाते तारे देखे हैं,
उदय-अस्त होते हुए,
उम्र के अगल-बगल चमकते हुए।
मैंने प्यार की बाढ़ तो नहीं देखी है
पर उसकी कल-कल सुनी है,
पत्थरों को बहाती
मिट्टी को काटती, एहसासों में डूबती,
उम्र से लड़ती-झगड़ती ।
**महेश रौतेला