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Kirti kashyap

Kirti kashyap

@kirtimaheshkashyap939064


"ऐ रात, ठहर जा ज़रा...."

ऐ रात,
फिर तेरे आँचल तले बैठी हूँ,
वो बातें लेकर
जो कहना नहीं चाहती,
मगर अब छुपा भी नहीं पा रही हूँ।

तू ही तो मेरे हर दर्द की गवाह है,
तूने ही देखा है
कैसे मैं बात अधूरी छोड़कर
ख़ामोशियों में सिमट जाती हूँ।

तू ही तो जानती है
मैं कितनी बार मुस्कुराई हूँ
बस आँसुओं को गिरने से रोकने के लिए।

तेरे आँचल में जब आँसू टपकते हैं,
तो लगता है, जैसे तू भी
थोड़ी देर को रो लेती है मेरे साथ।

तेरे सन्नाटे में अब सुकून मिलता है,
वरना इन ख़यालों के दरमियाँ
शोर बहुत है...

लेकिन तू भी अजीब है,
हर रोज़ आती है
और हर रोज़
मुझे थोड़ा और तन्हा कर जाती है।

सुनो,
आज ज़रा देर से जाना,
क्योंकि कुछ एहसास ऐसे हैं
जो अब तक लफ़्ज़ों में ढल नहीं पाए...

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल"

ना जाने किस ग़लतफ़हमी का हम शिकार हो गए,
बे-ख़ता होकर भी उनकी निगाहों में ख़तावार हो गए।

अजब है हम-नफ़स का ये अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल भी,
इल्म नहीं, किस बात से हमसे बेज़ार हो गए।

ख़ुद को मार के अल्फ़ाज़ पन्नों पर उतारती हूँ मैं,
शायद वो समझते हैं, हम मगरूर क़लमकार हो गए।

गिले-शिकवे और कीना ही लिखा है तक़दीर में,
अब हर मरहम मेरे ज़ख़्मों पर बे-असरदार हो गए।

जो दर्द दिल में थे, वही अल्फ़ाज़ का श्रृंगार हो गए,
हम तन्हाई में लिखते-लिखते शायर नामवर हो गए।

अब मेरी ख़ामोशियों को भी इल्ज़ाम दिया जाता है,
"कीर्ति", हर इक मोड़ पर किस्मत से लाचार हो गए।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️


हम-नफ़स = दोस्त, मित्र
अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल = नज़रअंदाज़ करना, बेरुखी का तरीका
इल्म = ज्ञान, जानकारी
बेज़ार = खफ़ा, नाराज़
कीना = दुश्मनी, रंज

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"दिल में जो जला था दिया, उसे बुझाने का हक़ भी दिल ने ही दे दिया,
उजालों से डर गया था शायद… इसलिए फिर अंधेरों में खो गया।"

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"इज़्ज़तदार लोग"

हर बात पर करते हैं तकरार लोग,
मगर समझते हैं ख़ुद को समझदार लोग।

दूसरों की बदनामी करने को समझते हैं हुनर,
अपनी बारी आए तो हो जाते हैं बेदार लोग।

सच को तोड़-मरोड़ के पेश करते हैं यूँ,
जैसे ख़ुद ही हों कोई अख़बार लोग।

नेकी की बातें, मगर दिल में रखते फ़रेब,
बाहर से पाक, अंदर से दाग़दार लोग।

फ़ज़ूल बातों में करते हैं शोर बार-बार,
मगर सच कह दो, तो हो जाते हैं बेज़ार लोग।

ये अदब का चलन सिखाते हैं हमें,
बाज़ नहीं आते ये दो-चार लोग।

"कीर्ति" सच बोल कर भी हो जाती हैं गुनहगार,
झूठ बोल कर भी बन जाते हैं इज़्ज़तदार लोग।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️


बेदार = चौकन्ना
बेज़ार = नाराज़

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ना सवाल बाक़ी रहे, ना जवाब की कोई तलब,
बस एक एहसास-ए-ख़ामोशी रह गया…जिसके अब कोई मायने नहीं।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"मैंने खिड़की से देखा"

मेरे दरिचे से सुनी मैंने चीखें गूंजते हुए,
खिड़की से देखा सारा मंज़र सहमते हुए।

चौखट भी रोई उसकी दर्द-ए-सदा सुनकर,
जब उस रूह को देखा मैंने सिहरते हुए।

उसके आँचल में टूटी चूड़ियाँ बहुत कुछ बोल गईं,
सपने गिरते गए जैसे पत्ते झड़ते हुए।

हर दहलीज़ पर ख़ामोशी का साया गहरा था,
मैंने इंसान को देखा, इंसानियत मिटते हुए।

चाँद ढक गया था बादलों के पर्दे में कहीं,
शायद शर्मिंदा था वो ये मंज़र देखते हुए।

मैं भी पत्थर बनी बैठी रही कुछ देर तक,
दिल ने चाहा चिल्ला उठूँ, मगर थरथराते हुए।

"कीर्ति" उस लम्हे का बोझ नहीं उतरेगा उम्रभर दिल से,
ज़ब मैंने देखा था उसे बिखरते हुए, लहू बहते हुए।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"रूठी हवा"

ऐ हवा, क्या तू भी ख़फ़ा हो गई है,
तेरे रुख़ की तरह अब जुदा हो गई है।

तू जो लायी थी ख़ुशबू किसी नाम की,
अब वही याद बद्दुआ हो गई है।

तेरे झोंकों में ठहरती थी धड़कन कभी,
अब तेरी आहट भी ख़ला हो गई है।

ज़िंदगी ने सिखाया अजब फ़लसफ़ा,
जो कभी चाह थी — अब सज़ा हो गई है।

हर दुआ अब तेरे साए में खो गई,
तेरी ख़ामोशी ही दवा हो गई है।

"कीर्ति" अब किससे गिला कीजिए,
मुझसे यूँ रूठ कर, हवा बेवफा हो गई है।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"ख़ामोश हूँ मैं"...

हर एहसास को आँचल में समेटे हुए,
मुस्कान में दर्द छुपाए — ख़ामोश हूँ मैं।

जो कहना था, वो आँखें कह गईं सब,
लब थरथराए मगर — ख़ामोश हूँ मैं।

अब आह भी ज़ेवर सी लगती है मुझे,
दर्द को सजा बना के — ख़ामोश हूँ मैं।

घर की दीवारों से पूछो ज़रा,
कितनी बार टूटी हूँ — फिर भी ख़ामोश हूँ मैं।

सहमी नहीं, थमी नहीं, बस ठहर सी गई,
तूफ़ानों से गुज़र कर भी — ख़ामोश हूँ मैं।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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"उसके हाथ कभी नहीं लगी वो पर्ची जिसपे लिखा था "कहो"

कहा सब्र करो,
तो वो चुप हो गई।
कहने की उम्र बीती,
सुनने वाला कोई रहा ही नहीं।

अब वो बस बैठी है,
आँखों में सन्नाटा लिए,
जैसे बोलने की हिम्मत
कभी थी ही नहीं…

कहो —
पर किससे?
जो सुनते हैं
वो समझते नहीं

जिस लफ़्ज़ पर लिखा था "कहो",
वो कभी उसके होंठों तक पहुँचा ही नहीं।

शब्द थे… पर हक़ नहीं था,
ज़ुबान थी… पर इज़ाज़त नहीं।

अब हर रात वही पर्ची जलती है,
जिस पर किसी ने उम्मीद लिखी थी।
और वो...
अब भी चुप है —
क्योंकि कहने से ज़्यादा दर्द
न सुने जाने में होता है।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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“सुख़नवर की ज़िन्दगी”

सुख़नवर की ज़िन्दगी आसान नहीं होती,
हर लफ़्ज़ की क़ीमत अयान नहीं होती।

हर मिसरा किसी ज़ख़्म का किस्सा कहता हैं,
ये रूह की स्याही यूँ ही दान नहीं होती।

वो हँस दे भीड़ में, तो समझ लेना ऐ दोस्त,
वो हँसी उसकी मुस्कान नहीं होती।

हर शेर के पीछे है तहरीर-ए-जुनूँ,
ये रूह की तहरीर कह़ान नहीं होती।

वो जो दिल में उतर जाए, वही सुख़न है,
वरना हर शेर में भी जान नहीं होती।

लफ़्ज़ों में रूह भर के, खुद अधूरा रहता हैं,
चेहरे पे लिखी कोई दास्तान नहीं होती।

महफ़िल में जो वाह-वाह हासिल करे,
वो हर सदा दिल की ज़ुबान नहीं होती।

"कीर्ति" ने जो कहा, दिल ने महसूस किया,
मगर हर बात भी लफ़्ज़ों में बयान नहीं होती।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️



सुख़नवर = शायर
अयान = जाहिर, प्रकट
मिसरा = शेर की एक पंक्ति
तहरीर = लिखावट
कहान = कहानी
सदा – आवाज़

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