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Kirti kashyap

Kirti kashyap

@kirtimaheshkashyap939064


"इश्क़ की तपिश"


तुमने देखा कुछ ऐसे कि हाल-ए-दिल बे-हाल हुआ,
इश्क़ की दरिया में तेरी कतरा-कतरा सी बह गई मैं।

तेरी नज़रों के नूर में जब अपना अक्स देखा मैंने,
जो ना कहनी थी वो बातें, इशारों-इशारों में कह गई मैं।

जबसे डूबी तेरी आँखों में, तबसे लोग मुझसे जलने लगे,
दुनिया के सारे सितम, ख़ामोशी से हँसते-हँसते सह गई मैं।

तेरी बाहों के घेरे में तिनका-तिनका सी बिखर गई मैं,
दिल का आलम मत पूछो, बस तुझमें सिमटकर रह गई मैं।

तेरे इश्क़ की तपिश मिली तो पिघल गए जज़्बात मेरे,
पत्थर सी थी हाँ पहले, फिर रेत-सी बनकर ढह गई मैं।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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ये हसीन वादियाँ,
ये खुला आसमान,
और मौसम का नज़ारा,
दो चाय के कप,
एक हमारा और
दूसरा भी हमारा,
हम नहीं देते अपनी चाय किसी को ☕🙈
Good morning 🌅

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"तेरे इश्क़ ने तो क़लम को जादूगर बना डाला,
काग़ज़ पर उतर कर हर अल्फ़ाज़ शेर हो गया।"

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

"बारिश और यादें"

ये बारिश की बूँदे आज मुझे भिगोने लगी,
बरसों से सोए मेरे अरमानों को जगाने लगी।

फलक से गिरती ये छम-छम करती बूँदे,
मेरे कानों में एक मधुर सी धुन गुनगुनाने लगी।

चेहरे को छूकर ज़ब बूँदे टकराई मेरी पायल से,
ये पायल भी फिर बेबाक सी होकर थिरकने लगी।

अश्रु छलके और बूंदो में घुलकर जा गिरे ज़मीं पे,
ज़ब माज़ी की यादें मेरे दिल को सताने लगी।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️


माज़ी = अतीत

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जाना चाहा था किधर, और किधर जा रही हूँ मैं,
बस जिधर तू लें जा रही है ज़िन्दगी, बढ़ती जा रही हूँ मैं।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️

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"मै ही काश हूँ"

मै मोहब्बत, मै ही आस हूँ।
किसी की धड़कन, किसी की साँस हूँ।

मै जन्म-ओ-जन्म की प्यास हूँ।
मगर चलती-फिरती इक लाश हूँ।

मै अदना, मै ही ख़ास हूँ।
है कई खफ़ा, किसी को रास हूँ।

मै गमों का ज़िन्दा एहसास हूँ।
मै तन्हाइयों का सुर्ख लिबास हूँ।

मै मंज़िल-ए-राही, मै ही तलाश हूँ।
किसी की रंज, किसी की अरदास हूँ।

मै हासिल नही मगर सबके पास हूँ।
किसी की खुशी, किसी के लबों की मिठास हूँ।

मै मशहूर "कीर्ति" ख्यालों का उल्लास हूँ।
मै आह, उफ्फ, मै ही काश हूँ।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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हम तो जी रहे थे तन्हा ख़ुशी से मग़र,
आज फिर उसकी यादों ने रुला दिया,

दिल में जल रही थी एक उम्मीद की शमा,
जिसे अश्कों की बारिश ने बुझा दिया।

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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आधी रात होने को है और नींद आँखों से कहीं कोसों दूर है। सोने की सारी कोशिशें नाकाम होती नज़र आ रही हैं। रात के इस पहर में चारों तरफ़ सन्नाटा फैला हुआ है। यही वो समय है जब मैं सबसे ज्यादा महसूस कर सकती हूँ खुद को। सुन सकती हूँ अपनी साँसों का गूंजना, अपनी सिसकियों को — जो दिन भर सुनाई नहीं पड़तीं। सुन सकती हूँ उस घड़ी की टिक-टिक को, कुछ अनकही बातों को, और मेरी अंतरात्मा की आवाज़ को जो कहीं दफ़न हैं मुझमे ही।

मैं कोशिश करती हूँ खुद से वो बातें करने की, जो किसी से कही नहीं जा सकतीं। यही घड़ी की टिक-टिक मुझे बार-बार एहसास दिलाती है कि समय कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और मैं ठहरी हुई हूँ बीते कल में। यह घड़ी अक्सर मुझे ताना देती है, मानो कह रही हो — जैसे मैं अपनी गति से बढ़ती जा रही हूँ तुम क्यों नहीं मेरे साथ साथ-साथ चल सकती? क्यों ठहरी हो बरसों से अतीत में?

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️

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अंज़ाम-ए-मोहब्बत"


ऐ हवा मेरा ये पयाम देना,
मोहब्बत उनको तमाम देना।

कहना उन्हें ये अकेले में सबसे,
के मेरी वफ़ा को मक़ाम देना।

हौले से छूना ज़बी को उनकी,
मेरे लबों का सलाम देना।

कहना उन्हें, मेरे दिल की सदा को,
वो अपने लफ़्ज़ों में नाम देना।

चाहत "कीर्ति" की ही रहे उनके दिल में,
बस इस मोहब्बत को अंजाम देना।

Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️


पयाम = सन्देश
ज़बी = माथा

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"कभी अगर थोड़ी सी ख़ुशी मिल जाए तो डर लगता है,
हालांकि ऐसा लगना तो नहीं चाहिए मग़र लगता है।"

Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️