अपराध ही अपराध

(9)
  • 17k
  • 0
  • 8.7k

‘इंटरव्यू के हाल में’ खूब भीड़ थी। बहुत सारे नौजवान हट्टे-कट्टे, छोटे- बड़े सुंदर, इंटरव्यू के लिए इंतजार करके खड़े लोगों को देखते हुए कार्तिका ने अंदर प्रवेश किया। ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ नाम के कई 100 करोड़ सम्मानित संस्थाओं, की ‘जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर’ वह थी। वह 24 साल की एक सुंदर लड़की ऐसे एक बड़े पद पर होना निश्चित रूप से एक सकारात्मक बात ही…. और भी कई आश्चर्यचकित बातें उसमें थी। बालों को अच्छी तरह से संभाल कर चोटी बनाकर बालों में फूल लगाकर और इस जमाने के लड़कियों जैसे बिना कुछ लगाइए नहीं! उसने एक मटर के बराबर स्टीकर की बिंदी लगाई हुई थी। उसको देखकर कई युवाओं ने सोचा वह भी इंटरव्यू देने के लिए आई है पहले ऐसी सोचा। परंतु उसके पीछे ही एक आदमी ब्रीफकेस को लेकर जाते देखकर उन्हें लगा यहीं J.M.D., इस फैसले में वे आए। उनके पीछे ही ‘व्हीलचेयर’ में एक आदमी को अंदर लेकर गए।

New Episodes : : Every Monday, Wednesday, Thursday & Saturday

1

अपराध ही अपराध - भाग 1

इंदिरा सौंदराराजन इंदिरा सौंदराराजन तमिल के बहुत बड़े और प्रसिद्ध लेखक हैं। आपने बहुत से उपन्यास और कहानियां लिखीं इन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं। मैंने इनके तमिल उपन्यास 'अपराध ही अपराध' का अनुवाद किया है। आशा है आप लोगों को बहुत पसंद आएगा। आदमी गलती करने के बाद चाहे तो सुधार भी सकता है। वह कैसे इस उपन्यास से जानिएगा। इसमें आखिर तक आपकी उत्सुकता बनी रहेगी। एस भाग्यम शर्मा शिक्षा एम.ए. अर्थशास्त्र, बी.एड., 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य । पुस्तकें: कहानी संग्रह - नीम का पेड़, झूला, बेटी का पत्र। तमिल से हिंदी में अनूदित-बाल कथाएं, ...Read More

2

अपराध ही अपराध - भाग 2

(अध्याय 2) “बहुत अच्छी बात है, ‘पानीपत युद्ध कब हुआ? केनेडी को शूट करके करने वाले का नाम क्या हमेशा पूछने वाले प्रश्न आपने नहीं पूछा…थैंक्स,” वह बोला। बहुत ही आश्चर्य से उसे देख कार्तिका “फिर इस कप में कितनी मिट्टी के कण हैं आप करेक्ट बता देंगे?” बोली । “इसमें, 3 लाख 40 हजार 340 मिट्टी के कण हैं। आपको संदेह हो तो आप ही इसे गिन कर देख लीजिएगा,” कहकर उसके जवाब के लिए उसे ध्यान से देखने लगा धनंजयन । एक क्षण के लिए वह एकदम स्तंभित रह गई कार्तिका। फिर अपने को संभाल कर, “बिना ...Read More

3

अपराध ही अपराध - भाग 3

अध्याय 3 पिछला सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ संस्था के इंटरव्यू के लिए गए साइकोलॉजी मे पोस्ट डिग्री तक पढ़ें ‘यह काम ‘रिस्क’ वाला है। उनके हिस्सेदारी से उसको जीवन पर विपत्ति आ सकती है….’ऐसा कहकर तुम नौकरी करने को राजी हो पूछा। धनंजयन के सहमति के बाद उसको रहने के लिए अपार्टमेंट, ड्राइवर और एक कार के साथ 3 लाख रुपए वेतन के कहकर संस्थापक कृष्णा राज की लड़की कार्तिका के कहते ही उसे एक सुखद आघात हुआ- सुखद आघात से धीरे-धीरे धनंजय बाहर आया तो मुझे 3 लाख रुपए वेतन जिस पर वह विश्वास ना कर सकने के ...Read More

4

अपराध ही अपराध - भाग 4

अध्याय 4 “मैंने तो शुरू में ही बोल दिया… हम किसी भी बात के लिए कोर्ट और पुलिस नहीं जाते हैं।” “क्यों ऐसा, वे लोग फिर किस लिए हैं?” “उनके पास जाओ तो भी कई प्रश्न पूछेंगे। उसके जवाब देने के स्थान पर हम नहीं हैं।” “समझ रहा हूं…वह करोड़ रूपया काला धन है?” “किस पैसे वालों के पास आज काला धन नहीं है? सचमुच में वह अच्छा पैसा है। तिरुपति भगवान का ही है । उसका ही उस पर हक है उन्हीं के पास पहुंचना चाहिए।” “मैं कह रहा हूं उसे गलत मत लीजिएगा। उस भगवान के ...Read More

5

अपराध ही अपराध - भाग 5

अध्याय 5 पिछला सारांश- एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालना है। उसे संस्था की दूसरी हिस्सेदार नाम दामोदरन है, वे ही इसमें बांधा डालेंगे। कार्तिका के ऐसे कहने पर इसका कारण धनंजयन पूछता है। दामोदर के लड़के विवेक से शादी करने को मेरे मना करने के कारण एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालने जाते समय वे बाधा उत्पन्न करते हैं। दामोदर के जासूस बहुत है इस तरह की बातें कार्तिका ने बताया… धनंजयन की अम्मा सुशीला पापड़ों को धूप दिखा रही थी। सिलाई की मशीन में एक ब्लाउज की सिलाई करने में मगन ...Read More

6

अपराध ही अपराध - भाग 6

अध्याय 6 “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच’ सच बोलो, यह 3 लाख रुपए 1 का या 1 साल का?” अपनी बातों को टाॅन्टिग में लेकर और नकल उतारते हुए श्रुति बोली। ‘मेरी जिंदगी के लिए है यह रुपए इनको कैसे बताऊं?’ अपनी अक्लमंद छोटी बहन को मौन होकर घूरते समय ही उसका मोबाइल बजा। “क्यों मिस्टर धनंजयन…कृष्ण राज के पी.ए., बनने को राजी हो गए लगता है?” कान के अंदर एक रहस्यमय आवाज आई। अपने सिर के ऊपर एक छिपकली गिरी जैसे उसे महसूस हुआ ” आप कौन?” धनंजयन ने पूछा। “क्यों तिरुपति यात्रा ...Read More

7

अपराध ही अपराध - भाग 7

(अध्याय 7) पिछला सारांश- कार्तिका इंडस्ट्रीज में नौकरी लगी है और तनख्वाह 3 लाख रुपया है ऐसा अपनी मां और बहनों को धनंजयन ने बताया। इस पर विश्वास न करके उन लोगों ने प्रश्न के ऊपर प्रश्न पूछा उनके परिवार के लोगों ने। इसी समय धनंजयन को इंडस्ट्री के हिस्सेदार के लड़के विवेक का फोन आता है। कार्तिका ने जैसे बताया वैसे वैसे एक करोड रुपए को दान पेटी में नहीं डालना क्योंकि कार्तिका के अप्पा एक धोखा देने वाला आदमी है। इसीलिए इस नौकरी से अलग हो जाओ ऐसा कहता है विवेक। इस बार मोबाइल में कार्तिका ...Read More

8

अपराध ही अपराध - भाग 8

(अध्याय 8) “मैं बाहर ही खड़ी हूं। व्हाइट कलर की बी. एम.डब्ल्यू कार…” कार्तिका बोली। पर्दे पर क्लाइमैक्स आखिरी सीन देख रहे समय बाहर निकाल कर धनंजयन आ गया। इंतजार करते कार के पीछे सीट पर चढ़ने के लिए जा रहें, उसे आगे की सीट में बैठने के लिए कार्तिका ने बुलाया। “मैं ड्राइव करूं?” पूछ कर उसे पास के सीट में सरकने को बोला। कार रवाना हुई। 60 लाख रुपए की कीमत वाली गाड़ी मक्खन जैसे सड़क पर फिसल रही थी। “बहुत स्मूथ है” धनंजयन बोला। “इससे पहले इसे चलाई नहीं क्या?” कार्तिका ने पूछा। “देखा ही ...Read More

9

अपराध ही अपराध - भाग 10

(अध्याय 10) मोबाइल फोन को जेब में रखते हुए धनंजयन ने कार्तिक को देखा। वह , उसके इतने काम करने को देख कर भ्रमित हुई । “क्या बात है मैडम…. ऐसा देख रही हो?” “एकदम फर्राटे से एक-एक करके फैसला करते हो ।उसे भी बड़ी तीव्र गति से करते हो। हां क्या असली पुलिस उन लोगों को पकड़ लेगी?” कार्तिका ने पूछा। “जरूर पकड़ेगी। पुलिस वाले बिल्कुल वैसा ही भेष बना लें बिल्कुल सहन नहीं कर सकते।”धनंजयन ने बोला। “कहीं वे लोग बच गए तो?” कार्तिका ने पूछा। “हमें पॉजिटिव की सोचना है…. उससे भी बढ़कर यदि वे ...Read More

10

अपराध ही अपराध - भाग 9

(अध्याय 9) पिछला सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ कंपनी में नौकरी में मिले धनंजयन को पहला असाइनमेंट एक करोड रुपए तिरुपति दान पेटी में डालने के लिए बोला। उसी समय उसको विवेक नाम के आदमी से धमकी मिली। उसकी परवाह न करके कार्तिका इंडस्ट्रीज़ एम.डी.की लड़की कार्तिका के साथ तिरुपति जाने का उसने फैसला कर लिया। इंडस्ट्रीज के दूसरे हिस्सेदार से धनंजय को इस तरह की आफ़त हो सकती है इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट रूप से कार्तिका ने बता दिया। उन परेशानियों को भी दत्ता दिखाकर कार्तिका के साथ तिरुपति जाते समय रास्ते में पुलिस वाले उन्हें रोकते हैं- जब ...Read More

11

अपराध ही अपराध - भाग 11

अध्याय 11 पिछला अध्याय का सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ के मालिक कार्तिका के साथ तिरुपति अपने सहायक धनंजय के गई। रास्ते में उन्हें नकली पुलिस वालों ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की वहां से भी बचकर निकलें। नकली पुलिस वालों के बारे में पुलिस को उन्होंने सूचना दी और फिर तिरुपति जाकर दर्शन करके कार्तिका के पिताजी के एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डाला। दर्शन करके वापस आते समय इन्होंने जिससे कंप्लेंट किया था उन्होंने इनके रास्ते को रोक कर उनसे बचकर निकल गए वह कौन से आदमी है उन लोगों ने पूछा। इंडस्ट्री के ...Read More

12

अपराध ही अपराध - भाग 12

अध्याय 12 कार्तिका के प्रश्न, पर पहाड़ी रास्ते में पेड़ के छाया के नीचे गाड़ी को उसने खड़ी उसे आंखें फाड़ कर देखा धना। “क्या बात है धना…. विवेक से ज्यादा मैं तुम्हें सदमा दे रही हूं…सदमा तो होगा। आगे आगे जब मैं बोलूंगी उन सब को सुनकर, मुझे छोड़ दीजिए ऐसा भी तुम बोल सकते हो।” “बस करो मैडम…. रहस्यमय ढंग से आप बोले तो मैं नहीं समझ सकता। कृपया साफ-साफ बात कीजिएगा” कहते ही गाड़ी से नीचे उतर गई कार्तिका। पास में एक बस ठंडी हवा छोड़कर, उसके आगे से निकल गई। वह भी उतर गया। ...Read More

13

अपराध ही अपराध - भाग 13

अध्याय 13 पिछला सारांश- कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्णा राज के मनौती को पूरा करके, उनकी लड़की और उनके धनंजयन के साथ वापस आ रही, एक करोड रुपए को दान पेटी में डालने के बाद। उसे इंडस्ट्री के हिस्सेदार दामोदरन और उसके लड़के विवेक, कृष्णराज को, उनकी लड़की कार्तिक को धमकाते हुए आए इस समय धनंजयन को भी उन्होंने धमकी दी। दामोदरन और कृष्णा राज दोनों में किस बात की लड़ाई है। ऐसा कार्तिका से धनंजयन ने पूछा तो उसने दामोदरन के अपने पापा के शुरुआती जीवन में किए गए गलत अपराधिक कामों के बारे में बताया। जिसकी वजह ...Read More

14

अपराध ही अपराध - भाग 14

अध्याय 14 “ बोले तो अब ही सर, मैं आपको बहुत ही सम्मान देता हूं।” “मैं जो रुपए बंगला तुम्हें दे रहा हूं इसलिए ऐसे बोलते कह रहे हो क्या धनंजयन?” “कसम से नहीं सर।” “धनंजयन, मेरे बारे में तुम्हें पूरा कार्तिका ने नहीं बताया। तुम्हें सब मालूम होने पर तुम ही नहीं, कोई भी मुझे एक मनुष्य भी नहीं समझेगा।” “ऐसा नहीं है सर…गलती करने से भी, उसके लिए परिहार करने की इच्छा रखने वाला एक आदमी श्रेष्ठ है। ये बहुत अच्छी बात है सर। इसके लिए धैर्य अच्छी बुद्धि चाहिए। जो आपके पास है फिर दूसरे ...Read More

15

अपराध ही अपराध - भाग 15

अध्याय 15 पिछला सारांश - कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णा राज के दिए पहले असाइनमेंट को सफलतापूर्वक धनराजन खत्म किया। उसके कौशल की कृष्णराज ने सराहना की। उसकी नौकरी का ऑर्डर और मकान, कार की चाबी धनंजयन को सौंपा, एच.आर., श्यामंशिवम ने। नई अपार्टमेंट को देखने के लिए अपनी बहनों के साथ धनंजयन आया। इस समय उसने देखा खिड़की के रास्ते से देखने पर पता चला सामने वाले बिल्डिंग के छत से एक आदमी बिनोक्युलर से उसे ही देख रहा था देख कर धनंजयन हकबकाया। सामने के बिनोक्युलर से अपने को ही देख रहे आदमी को धनंजयन ने ...Read More

16

अपराध ही अपराध - भाग 16

अध्याय 16 “फिर इसे?” “इसे किस मंदिर में से चोरी किया था, उस मंदिर में जाकर रखना है।” यही दूसरा असाइनमेंट है क्या?” “रख रहे हैं यह बिना मालूम हुए रखना है।” “रखना बिना मालूम हुए मतलब?” “चोरी करने जा रहे हैं ऐसे ही जाना है। परंतु चोरी करने नहीं रखने के लिए।” “समझ में आ रहा है मैडम। इसे सीधे दो तो पुलिस कैद कर लेगी। दंड मिलेगा। इसीलिए किसने चोरी की है पता नहीं चलना चाहिए। ऐसा ही है ना?” “ऐसा ही है। अप्पा दंड से नहीं डर रहे हैं। जेल में चले जाएं तो आगे ...Read More

17

अपराध ही अपराध - भाग 17

अध्याय 17 पिछला सारांश: अनाथालय में उस बच्चों को भेज दिया ऐसा बताया।’कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्ण राज बेटे के बारे में पूछताछ करने के लिए धनंजयन नगर पालिका के ऑफिस मे गया। 27 साल पहले जो हुआ था उसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं मालूम। उस बच्चों को ले जाकर वहां जमा करने वाले कर्मचारी इस समय जिंदा नहीं है। परंतु उसके घर के पते के बारे में तो लिखा होगा, 2 दिन में उसे मैं ढूंढ कर आपको मैसेज कर दूंगा । मैं आपकी मदद करूंगा। ऐसा ऑफिसर ने कहा। धनंजयन की अक्का शांति के ...Read More

18

अपराध ही अपराध - भाग 18

अध्याय 18 “अम्मा मत परेशान हो। धना अब एप्पल मोबाइल ही लेकर देगा। वही सब ठीक हो गया ना?” करने जैसे शांति बोली। धना का मन, विवेक के बारे में सोच रहा था। कहीं उसने कीर्ति और श्रुति को फॉलो किया होगा क्या सोच कर उसे डर लगने लगा। उसी समय घर पर एक कार आकर खड़ी हुई, उसमें से श्रुति और कीर्ति दोनों उतरी। “यह देखो दोनों आ गई” कहकर शांति हड़बड़ाई। उसके बाद उसका सोच अलग हुआ। “क्या है रे, कार में आ रहे हो किसकी गाड़ी है,।”अम्मा ने पूछा “घबराओ मत अम्मा। कॉलेज एडमिशन के लिए ...Read More

19

अपराध ही अपराध - भाग 20

अध्याय 20 “मैं पर्सनल सेक्रेटरी हूं। वे अब बाहर जाने-आने, के स्थिति में नहीं हैं। इसीलिए वे अपनी कार्तिका के द्वारा ही इस इंडस्ट्री को चला रहे हैं। “कार्तिका नहीं मेरा चयन किया है। उनकी समस्याओं के मदद करने के लिए ही मैं भी सेक्रेटरी के आम के लिए ज्वाइन किया है” धनंजयन ने बोला। “ओ…कहानी ऐसी जा रही है? उनकी मदद करने के लिए तुम। तुम्हारी मदद करने के लिए मैं?” कुमार बोला। कर को चलते हुए अटल अटल और गंभीर वाणी से “हां। मैं नहीं हूं अब… हम हैं ठीक?” धनंजयन बोला। उसके लिए सहमति दिखाते ...Read More

20

अपराध ही अपराध - भाग 19

अध्याय 19 पिछला सारांश- कीरानूर मंदिर से कृष्ण राज ने पहले पहले चुराई हुई मूर्ति को उसी जगह के लिए धनंजयन में प्रयत्न कर रहा था। कार्तिक इंडस्ट्रीज के दूसरा हिस्सेदारी दामोदरन का लड़का विवेक ने बहुत प्रयत्न किया कि किसी तरह धनंराजन उनकी तरफ आ जाए। कई बार फोन में बात करने के बावजूद धनंजयन उसको मना कर देता था। धनंजयन को डराने के लिए उसकी छोटी बहनों को मदद करने जैसे नाटक, विवेक ने किया । मेरी बात नहीं मानो तो धनंजय के परिवार को मैं परेशानी में डाल दूंगा ऐसा विवेक ने धमकी दी। कुमार ...Read More

21

अपराध ही अपराध - भाग 21

अध्याय 21 पिछला सारांश- धनंजयन को मिले सेकंड असाइनमेंट के लिए वह अपने दोस्त कुमार के साथ कीरनूर जाता है। ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ कंपनी के कार्तिका से कहकर कुमार को भी इस कंपनी में ड्राइवर के नौकरी में रखवा दिया। उसने विवेक के बारे में कुमार को बता दिया और उसे उसे सतर्क भी कर दिया। कीरनूर गांव के शिव मंदिर के धार्मिक कर्ताधर्ता सदा शिवम कुमार के मामा थे। इस बात को जानकर धनंजय उनसे मिलने गया तो इस समय उनके घर में एक नाग आ गया। कुमार के मामा सदा शिवम ने उसे नाग देवता को ...Read More