Apradh hi Apradh - 43 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 43

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अपराध ही अपराध - भाग 43

अध्याय 43

 

 पिछला सारांश:   

 स्मगलिंग के धंधे में लगे उनके साथी रामकृष्णन के लड़के मोहन की शादी धनंजयन की अक्का शांति के साथ, जल्दी-जल्दी शादी करके धनंजयन को अपने जाल में फंसाने की सोच रहे, दामोदरन को धोखा ही मिला।

किसके बीच में रामकृष्णन को पुलिस से बचने के लिए हार्ट-अटैक आने का नाटक कर उनको बचाने के कार्य में असफलता ही हाथ लगी। 

अस्पताल में मोहन और शांति की शादी होनी थी तब अचानक बिजली के चले जाने से नहीं हो पाई। अब तुम्हारी बहन शांति की शादी नहीं होगी ऐसा विवेक ने कहा। 

धनंजयन को अब नौकरी में मत आओ ऐसा कार्तिका ने बोल दिया। ‘आगे बढ़े पैरों को को पीछे नहीं रखना चाहिए। इसीलिए शांति से मैं शादी करता हूं। कार्तिका के अप्पा कृष्णा राज की हम लोग मदद करेंगे…’ ऐसा धनंजयन के दोस्त कुमार बोला।

कुमार ऐसा बोलेगा ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था। धनंजयन के समझ में नहीं आया क्या बोलना चाहिए। कार्तिका भी स्तंभित रह गई। 

वहां एकदम से मौन पसर गया। 

उस मौन को कुमार ने तोड़ा। 

“क्या बात है धना तुम मौन हो गए; मैंने कुछ गलत बोल दिया क्या? एक करोड़पति को दामाद कहकर फिर ऐसी हालत में एक साधारण ड्राइवर, मुझे कैसे तुम्हारी अक्का को दे सकते हो! ऐसा संकोच कर रहे हो क्या? 

“जो कुछ भी तुम्हारे मन में हो तो तुम बोलो ! नहीं तो ! कहो क्या बात है। आगे तुम्हारी इच्छा है। यदि मेरी इच्छा में तुम्हें कोई लालच दिखे तो छोड़ दो” वह बोला। 

उसको सुनकर धीरे से मुस्कुराया धना, फिर उसने शांति को देखा तो उसने भी उसे देखा।

“शांति अब तुम्हें ही जवाब देना है। कुमार से शादी करने की तुम्हारी इच्छा है क्या?”

उसके ऐसे पूछते ही कुमार को एक भ्रम हुआ। 

“शांति…आप हां बोलिए। अब कुमार ड्राइवर नहीं है। हमारे कंपनीज में से एक में वह एक जनरल मैनेजर है। उसकी तनख्वाह भी लाखों में होगी। मैं आज ही ऑर्डर इश्यू करती हूं” कार्तिका बोली।

उसे सुनकर शांति स्तंभित रह गई। उसकी अम्मा सुशीला और उसकी दोनों छोटी बहनें श्रुति और कीर्ति ने कार्तिका को देखा। 

“तुम जो देख रही हो इसका मतलब समझ में आ रहा है, शांति। इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। कुमार को हम कई सालों से जानते हैं। बहुत ही अच्छा लड़का है” अम्मा बोली। 

“हां अक्का…कुमार एक अच्छा अन्ना है । हमें कोई आपत्ति नहीं है…" दोनों बहनें भी बोलीं।

“ऐसा है तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है…” ऐसा कहकर शरमाते हुए शांति ने सिर झुका लिया।

अगले ही क्षण कुमार की तरफ बढ़कर उसको छाती से लगाकर धना ने अपनी भावनाओं को उजागर किया।

फिर धीरे से अलग होकर, “यहां हमारे बोलने से हो जाएगा क्या!... तुम्हारे अप्पा अम्मा से नहीं पूछना पड़ेगा क्या?” ऐसा पूछा।

“शादी के मामले में मेरी इच्छा ही सर्वोपरि है ऐसा मेरे अप्पा और अम्मा ने पहले ही कह दिया है। उसके अलावा शांति ही लड़की है बोलने पर भी दूसरी बात नहीं करेंगे। मेरी अम्मा के लिए मैं जैसे हूं वैसे ही तुम भी मेरे अम्मा के लिए हो…” ऐसे कहने वाले कुमार के पास आकर उसे शुभकामनाएं देते हुए उससे कार्तिका ने हाथ मिलाया। 

“इस शादी को विवेक ही नहीं कोई भी रोक नहीं सकता। इस शादी को बहुत ही अच्छी तरह बढ़िया ढंग से होने के लिए मेरी शुभकामनाएं। अब तुम सभी लोग बड़ी खुशी के साथ रहना है तो मेरे साथ काम नहीं करना चाहिए।  

“मैं अब जनरल मैनेजर हूं ऐसा कहने का कारण शादी के लिए ही तो कहा था। दूसरा कोई कारण नहीं है। अभी तक तुम लोगों ने जो मेरे लिए और मेरे अप्पा के लिए मदद की बस बहुत है। उसे मैं कभी भी नहीं भूलूंगी। 

“अभी तुम लोग रिलीव हो जाओ। आप लोगों को कोई भी मदद चाहिए तो बताइए, मैं करने के लिए तैयार हूं” ऐसा कहते हुए अपनी भावनाओं में भाकर कार्तिक के आंसू आ गए। 

इससे सुशीला शांति श्रुति और कीर्ति सभी लोगों की आंखें नम हो गई, 

“फिर मैं आती हूं…”ऐसा कहकर रवाना होने वाली कार्तिक को “ठहरो बेटी…” आवाज देखकर सुशीला ने रोका।

“थोड़ा इधर आओ बेटी” सुशीला के कहने पर कार्तिक पास में आई। 

उसको घूर कर देखते हुए, “तुम अपने बड़प्पन से इस परिवार के ऊपर इतना ज्यादा भावनात्मक निकटता दिखाई इसलिए हमें क्या हमें कृतघ्नता दिखाना चाहिए?” बड़े शांति से सुशीला ने पूछा। 

जवाब में कार्तिका की आंखें फड़फड़ाने लगी। 

“बोल बेटी... तुम्हारे हम ऋणी रहें?”

“क्या कह रही हो अम्मा…सच में मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया।”

“नहीं समझ में आया…क्या तुम ही बड़प्पन से चल सकती हो। हमें नहीं चलना चाहिए?”

“अम्मा!”

“अब से तुम्हारे परिवार की हर समस्या हमारे परिवार की समस्या है। सिर्फ मेरा बेटा धना ही नहीं मेरा होने वाला दामाद कुमार ही नहीं…हम सभी लोग अब तुम्हारे साथ हैं। इसलिए हमें कितनी भी तकलीफ हो तो भी ठीक है उसके बारे में फिक्र नहीं ।

“धना…अब तुम आराम से अपने कर्तव्यों को निभाओ। यह मन अब तुम्हें नहीं रोकेगा। अच्छा या खराब सभी चीजों को हम लोग मिलकर ही सामना करेंगे उसका अनुभव भी लेंगे” बहुत ही भावुक होकर जब सुशीला कहने लगी तो दौड़ कर आकर कार्तिका ने उन्हें गले लगा कर रोने लगी। 

सभी लोग बहुत ही भावुक हो गए। 

कुछ घंटे में ही इस तरह के बदलाव!

मोबाइल बजा पर्दे पर देखने पर विवेक की आंखें एकदम चौड़ी हो गई। आंखों के सामने अंधेरा भी छा गया ऐसा लगा। उसे मोबाइल में व्हाट्सएप में कुमार और शांति दोनों के गले में मालाएं पहनें हुई फोटो थी। 

उसके नीचे लिखा था: 

सगाई पूर्ण हुई। शादी बहुत जल्दी होगी। पर निश्चित है उस समय तुम स्वतंत्र रूप से बाहर नहीं रहोगे। तुम सलाखों के पीछे होंगे….

आगे पढ़िएगा....