Apradh hi Apradh - 54 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 54

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अपराध ही अपराध - भाग 54

अध्याय 54

 

“भगवान, मिट्टी…मैं तो सोचता हूं भगवान जो एक सुंदर कल्पना है। ऐसी एक शक्ति सचमुच में हो तो हमने जिन भगवान की मूर्तियों को विदेश में बेच दिया तो, वह हमें जलाकर भस्म कर दिये होते।”

“आपको इस पर विश्वास नहीं हो सकता, परंतु मेरे लिए तो भगवान आप ही हो।”

“तुम्हारे विश्वास की मैं प्रशंसा करता हूं। मैं अभी एक जगह नहीं हूं; वह भी दूसरे देश में हूं। कोल्लिमलाई में जाकर छुपने के लिए मेरे पिताजी के साथ रहूंगा।”

“फिर मैं आपसे कैसे मिलूंगा?”

चंद्र मोहन जल्दी-जल्दी से लिखकर दे रहे थे उसे संतोष वैसा का वैसा ही कह कर रहा था। 

“तुम एक काम करो। अभी मैं रेड हिल्स के आगे उझकुट्टुकोत्तई के रास्ते, आंध्रा में प्रवेश करूंगा। तुम्हारे लिए उत्तुकोत्तई आंध्र बॉर्डर, में अपने कार को वहां खड़ा करुंगा। मेरा कार नंबर मैं बताता हूं उसे लिख लो, फिर हम मिलेंगे; जैसे ही हम मिलेंगे तब अपने योजनाओं के बारे में बात करेंगे। 

“बाय दी बाय, किसी भी बात को किसी से भी, तुम्हारी पत्नी सहित किसी से भी डिस्कस मत करो। अब तुम भी हमारे धंधे के एक सदस्य हो। अंडरग्राउंड जिंदगी कैसी होती है? अब ही तो समझने वाले हो…राइट ?”

“राइट सर…रख रहा हूं” ऐसा कहकर संतोष ने फोन काट दिया। 

“अगला काम उसको पकड़ना है वह भी तुम्हें लेकर” चंद्र मोहन बोले “कम ऑन रवाना हो…आपको रखकर ही हम उन्हें पकड़ेगे । ठीक से हमारा साथ दोगे तो तुम्हारा मनुष्य के बदलने का जो अपराध है उसको क्षमा करके तुम्हें अप्रूवल बनाकर तुम्हारा अपराध माफ कर देंगे। नहीं तो तुम भी जेल में जाओगे। अब क्या कहते हो?” ऐसा कहकर उसी के साथ चंद्र मोहन रवाना हुए। 

“सर, उन्हें छोड़ दीजिए। वे तो आपने जैसे बोला ऐसे किया ना” सुमति ने कहा। 

“उसे विवेक को कैद करके कुछ कार्यवाही है उसको पूरा करना है। उन सबके खत्म होते ही हम इसे छोड़ देंगें। आप फिकर मत करिएगा” चंद्र मोहन बोले।

अगले कुछ मिनट में ही कृष्णा राज एक एंबुलेंस व्हेन में, संतोष और चंद्रमोहन कार में सड़क पार कर वहां से रवाना हुए। 

आंसुओं के साथ में गेट तक कार्तिका गई। उसके साथ ही धनंजयन और कुमार भी गए।

सुमति और उसके दोनों बच्चे एक तरफ खड़े होकर देख रहे थे। उनके पास जाकर कार्तिका उसके हाथों को पकड़ कर, “बहुत बहुत धन्यवाद…तुम यदि सच नहीं बोलती तो हम बहुत बड़ा धोखा खा जाते” बोली। 

“आपका बहुत बड़ा मन है अम्मा…मार के भगाने लायक हमें आप धन्यवाद कह रही हैं।’

“तुम्हारे आदमी ने जो किया वह गलत था तो तुम क्या करोगी? किसी तरह उसने विवेक को फंसाया; उसका बाप भी फंस गया। अभी मुझे वही एक बड़े सांत्वना है।” अपने आंसुओं को पोंछते हुए कार्तिका ने कहा। 

“मैडम…मैं और कुमार दोनों वकील के पास जाकर सर को जमानत पर छुड़वाने का प्रयास करते हैं। उनकी शारीरिक बीमारी के कारण निश्चित रूप से उन्हें जमानत मिलने में मदद होगी। अब हमारा पहला काम वही है…” ऐसे बोलने वाले धनंजयन को देख, एक मधुर 

 मुस्कुराहट के साथ कार्तिका ने देखा।

“क्या है मैडम…अन्ना का विषय झूठा हो गया ऐसा सोच कर देख रहे हो क्या? साहब को जमानत पर छुड़वाने के बाद आपके अन्ना को ढूंढना ही हमारा पहला काम है। बिल्कुल पक्का हम ढूंढ लेंगे मैडम…’

“मुझे विश्वास है। इस समय अप्पा के बीमारी के बारे में आपको अच्छी तरह पता है। उनको कुछ होने के पहले अन्ना को आप ढूंढ कर उनके सामने ले जाकर खड़ा कर दीजिए। उसके बाद ही मेरे अप्पा शांति से अपने आंखें बंद कर सकेंगे।”

“क्यों मैडम, उनकी आंखें बंद करने के बारे में अभी हमें क्यों बात करना है? उनको पूरी तरह से हम ठीक कर सकते हैं। क्योंकि अब वह बदलकर एक अच्छे मनुष्य बन गए हैं। इसलिए उनको कोई भी स्ट्रेस अब नहीं रहेगा।

“बीमारी का मूल कारण भी स्ट्रेस ही होता है? इसलिए उनको अब सही करना आसान है। अब वे करीब करीब एक ‘अप्रूवल!’ हैं उन्होंने दामोदरन के जैसे और विवेक जैसे बचकर भागने की नहीं सोची। 

“इसलिए, कोर्ट छोड़ने का एक मौका है। हम पॉजिटिव ही सोचे ना?” धनंजयन के विश्वास के साथ बोलते ही उसके पास सुमति आई। 

“साहब …उस कचरे के डिब्बे के बच्चे के बारे में मेरे ससुर जी ने मुझसे बात की थी। एक दिन उसे उन्होंने क्रोमपेट ‘शारदा चाइल्ड होम’ में जाकर जमा कर दिया ऐसा बताया। वहां चले जाओ तो निश्चित रूप से वह कौन है पता चल जाएगा सहाब” वह बोली। 

धनंजयन और कुमार को इस खुशी में कूदने की इच्छा होने लगी। 

“कुमार कार को निकालो। अभी हम उसे चाइल्ड होम में जा रहे हैं” इस तरह धना बहुत जल्दबाजी कर रहा था। 

अगले कुछ मिनट में उनकी गाड़ी बंगला को छोड़कर रवाना हो गई। 

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