अध्याय 40
“डॉक्टर के इस तरह बोलने के बावजूद धना फैसला नहीं कर पा रहा था। परंतु कुमार के मन में एक बिजली चमकी।
धना को तरफ ले जाकर “धना एक तरह से एक यह एक अच्छा संदर्भ है। उस विवेक के बारे में जरा सोच कर देख। वह कब क्या करेगा? ऐसे स्थिति में डरते हुए अच्छा दिन देखने से यह कितना अच्छा है।
“डॉक्टर बोल रहे हैं जैसे रिसेप्शन को बहुत अच्छी तरह कर लेंगे। उसको फाइव स्टार होटल में रख लेंगे। ए. आर. रहमान नहीं तो इलैयाराजा को बुलाकर म्यूजिक का इंतजाम कर देंगे। यह कमी उसमें दूर हो जाएगी।” कुमार के ऐसे रहते ही धना को तसल्ली हुई।
“डॉक्टर, अभी मैं जाकर अपनी अम्मा को और बहनों को लेकर आ जाता हूं। कुमार तुम जाकर एक अच्छा मंगलसूत्र और चेन लेकर आ जाओ। बिना भूलें मालाएं भी लेकर आ जाओ” दूसरे ही क्षण कुमार और धना रवाना हो गए।
दामाद मोहन के चेहरे पर एक शांति दिखाई दी और उसने एक दीर्घ स्वास्थ्य छोड़ा। इस समय दामोदर जी ने भी उसे फोन किया।
“क्यों मोहन मैंने कहा जैसे ही सब कुछ हो गया ना?”
“हां अंकल। डॉक्टर ने ऐसा नाटक किया तो धना कुछ भी कह नहीं पाया। घर जाकर सबको लेकर आने के लिए चला गया। ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे में इस अस्पताल के आई.सी.यू वार्ड में ही हमारी शादी हो जाएगी।”
“शाबाश…शादी होने के अगले ही क्षण तुम किसी मंदिर के लिए रवाना हो जाओ। उसे कैप में तुम्हारे अप्पा को मेरे आदमी अपने कस्टडी में लेकर आ जाएंगे।”
“अंकल मेरे अप्पा को पुलिस में नहीं फंसना चाहिए। मैं आपके विश्वास पर ही हूं।”
“जरूर। धनंजयन, के तोड़ने के मामले में मैं तुम पर ही विश्वास कर रहा हूं। तुम अपनी पत्नी को इतना परेशान करो कि धनंजयन हमारे पैरों पर आकर गिरे।”
“यह सब मैं देख लूंगा अंकल।”
“गुड…कितनी दृढ़ मानसिकता से कह रहे हो सुनो। तभी मैं तुम्हारे पापा को ही नहीं मैं भी बच सकूंगा। यदि तुम्हारे अप्पा पुलिस में फंस जाए तो हम सब की कहानी खत्म हो जाएगी। फिर वह कृष्णा राज अप्रूवल बनकर हम सबको अच्छी तरह से फंसा देगा।”
“वह तो नहीं होना चाहिए अंकल।”
“मैं फिर बोल रहा हूं। सब कुछ गले में मंगलसूत्र पहने तभी होगा।”
“ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे में सब खत्म हो जाएगा अंकल। यह मंगलसूत्र बांधने का वीडियो भी मैं आपको व्हाट्सएप में भेज दूंगा ,” दामाद मोहन के आवाज में एक बड़ा उत्साह दिखाई दे रहा था।
धनंजयन के बात को सुनकर सुशीला स्तंभित रह गई। शादी होने वाली लड़की शांति में एक हिचकिचाहट होने लगी।
“अम्मा, सोने का समय नहीं है। जल्दी से शांति को तैयार कीजिए। इस शादी के होने पर ही हमारे संबंधी रामकृष्णन का जीवन निर्भर है।”
“क्या कह रहा रे तू, शादी को क्या सोचा तूने। एकदम से होने वाला काम है क्या? मुहूर्त देखना है लड़की को नई लड़की जैसे बनाकर मुहूर्त के समय सभी रिश्तेदार लोगों के सामने ही तो शादी होगी।”
“मुझे यह सब पता नहीं है। मैंने कहा ना संबंधी अपने जीवन के साथ संघर्ष कर रहे हैं। वे शायद ही बचें । यह आई तभी जान चली गई नहीं बोलेंगे क्या?”
“ऐसे कैसे बोलेंगे, उन्होंने ही तो जल्दी शादी होनी चाहिए इच्छा प्रकट की।”
“यहीं नहीं है अम्मा इससे भी ज्यादा अपना भी तो एक शत्रु है। जो कब, क्या करेगा पता नहीं। उन सबको देखो जो कुछ हो रहा है अच्छा है।”
धनंजयन के दबाव देकर ऐसा बोलने से उससे ज्यादा सुशीला कुछ भी कर नहीं पाई। अपनी शादी के साड़ी को वह निकाल कर लाकर उसे पहनाया। जो गहने थे उसे पहनाया। सभी को उसकी छोटी बहनों ने श्रुति और कीर्ति ने पहना दिया। दोनों बहनों ने अपने कपड़े बदलकर खूब सारे सिर में फूल लगा लिया।
वैसे ही वे जाकर अपने अप्पा के फोटो के सामने नमस्कार करके सभी लोग अपार्टमेंट से रवाना हुए तो सभी लोग आश्चर्य से देखने लगे।
कुमार मंगलसूत्र, चेन, फूल माला लेकर इनका इंतजार कर रहा था और उसी समय ही ये लोग बड़ी गाड़ी में आकर उतरे।
दामाद मोहन भी अस्पताल के एक कमरे में धोती और शर्ट पहन कर तैयार हुआ।
अस्पताल के डॉक्टर ने ही पंडित को फोन करके बुला लिया।
“एक संयुक्त संयोग को देखो, आज एक अबूझ सावा है। ऐसा एक बड़े समय बाद अपूर्व ही आता है।” सब लोग तारीफ कर रहे थे।
आखिर में सब लोग आए मंगलसूत्र पहनाने का समय भी आ गया।
आई. सी. यू. वार्ड में रामकृष्णन बिस्तर के पास खड़े होकर मोहन ने शांति को के गले में माला पहनाई। दोनों माला पहनकर पंडित ने मंत्र बोलकर मंगलसूत्र पहनाने को कहा। ऑक्सीजन मास्क के साथ बड़े गर्व के साथ रामकृष्णन देख रहे थे।
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